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श्री सम्मेदशिखर माहाम देवताओं ने, अयोध्यायां = अयोध्या में, विधिना = अच्छे ढंग से, विलासान् = अनेक मनोरञ्जन, चक्रुः = किये, (इति = इस प्रकार), इदं = यह नगर, अपि = भी, (विलासयुतं = मनोरंजन वाला, अभूत = हुआ. सेन्द्राः इन्द्र सहित, देवाः = सभी देवता, स्वर्ग - स्वर्ग को. ययुः = चले गये, पुत्रवीक्षणात् = पुत्र को निहारने से. दम्पत्ती = राजा और रानी, चित्रैः = अनेक प्रकार की विचित्र, तबालचेष्टितैः = उस पुत्र की बाल चेष्टाओं से, चित्रानन्दं = अनेक प्रकार के चमत्कारिक आनन्द
को, प्रजग्मतुः = प्राप्त हुये। श्लोकार्थ · पाण्डुक शिला पर भगवान का न्हवन करने के बाद इन्द्र पुनः
अयोध्या आया और उसने कभी किसी से न जीते जाने वाले होने से प्रभु का अजित यह सार्थक नाम रखा और उनके सामने भक्तिभाव से आश्चर्यकारी चमत्कारिक ताण्डव नृत्य किया। हर्ष से परिपूर्ण प्रसन्नचित्त देवों ने भी अयोध्या में अनेक प्रकार से, समुचित रीति से अनेक मनोरंजन किये। इस प्रकार सारा नगर ही मनोरंजन से पूर्ण हो गया। फिर इन्द्र सहित सभी देवता स्वर्ग चले गये । अपने पुत्र को निहारने से राजा-रानी भी पुत्र की अनेक पुकार की विचित्र बाल चेष्टाओं से नानाविध आश्चर्यकारी आनंद को प्राप्त हुये। द्विसप्ततिमितानां हि लक्षाणामायुरीरितम् ।
पूर्वाणामस्य चोत्सेधः शून्यवाण चतुर्मितः ।।७०।। अन्वयार्थ - अस्य = इसकी. आयुः = उम्र, द्विसप्ततिमितानां = बहत्तर
परिमित. लक्षाणां = लाख, पूर्वाणां = पूर्यों की, हि = ही. ईरितम् = कह गयी, उत्सेधः = ऊँचाई, शुन्यवाणचतुर्मित: -
चार सौ पचास परिमित, (धनुः = धनुष). (आसीत् = थी)। श्लोकार्थ - इनकी आयु बहत्तर लाख पूर्व की बतायी गयी है तथा शरीर
की ऊँचाई चार सौ पचास धनुष प्रमाण थी। कौमारं स य्यतीत्योक्तं राज्यं लब्ध्या च पैतृकम्। राजा समनुभूयाथ विरक्तः स बभूय हि |७१।।