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________________ द्वितीया ७१ माह की अमावस्या के रोहिणीनक्षत्र में रानी के गर्भ में आया। उसके गर्भ में आने से रानी वैसे ही सुशोभित हुई जैसे ज्ञान से सुबुद्धि शोभित होती है तथा अपने अद्भुत गाग्य से माघ शुक्ला दशमी के दिन उस राजा के सूर्यग्रह की उपमा वाले राजभवन में प्रभु प्रगट हुये। तदैव देवैः सामोदैः सुरेन्द्रप्रमुखैः प्रभुः । स्नापितः स्वर्णशैलेन्द्र क्षीरवारिधिवारिभिः ।।६६ ।। अन्वयार्थ - तदा = उस जन्म के समय, एव -- ही, सामोदैः = मोद अर्थात् प्रसन्नता सहित, सुरेन्द्रप्रमुखैः = देवेन्द्र को प्रमुख मानने वाले, देवैः = देवों द्वारा, स्वर्णशैलेन्द्रे = स्वर्ण निर्मित पर्वतराज अर्थात स्वमरू पर, क्षारयाधिवारिमिः = क्षीरसमुद्र के जल से, प्रभुः = भगवान्. स्नापितः = न्हवन किये गये। श्लोकार्थ - प्रभु का जन्म होते ही, इन्द्र की अध्यक्षता में देवों द्वारा अत्यंत हर्ष के साथ मेरू पर्वत पर बनी पांडुकशिला पर क्षीरसागर के जल से प्रभु का न्हवन किया गया। पुनस्त्वयोध्यां सम्प्राप्याजितत्वादजितामिधाम् । प्रभोर्विधाय देवेन्द्रः तदने भक्तिभावतः ।।६७।। अकरोत्ताण्डवं चित्रं देवा हर्षसमन्विताः । विलासान्विधिना चक्रुरयोध्यायामिदमप्यभूत् ।।६८।। सेन्द्रा देवा ययुः स्वर्ग दम्पत्तीपुत्रवीक्षणात् । तबालचेष्टितैश्चित्रश्चित्रानन्दं प्रजग्मतुः ।।६६ ।। अन्वयार्थ - पुनः = फिर से, अयोध्यां = अयोध्या को, सम्प्राप्य = प्राप्त कर या आकर, अजितत्वात् = किसी से न जीते जाने के कारण, प्रभोः - भगवान् का, अजिताभिधाम - अजित नामकरण, विधाय्य = करके, तदग्रे = उनके सामने, देवेन्द्रः = देवेन्द्र ने, भक्तिभावतः = भक्तिभाव से, चित्रं = आश्चर्यकारी विचित्र, ताण्डवं = ताण्डव नृत्य को, अकरोत् = किया, हर्षसमन्विताः = आनन्द से प्रसन्न हुये, देवाः =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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