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________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अधिकारिणः = अधिकारी अर्थात् व्रत संयम धारण करने में समर्थ, न = नहीं (सन्ति = हैं). महाप्रभो! = हे परमप्रभो!, तेषां = उनके समीपवर्ती = पास, यः = जो, स्वल्पायासः = थोड़ा सा प्रयास. (अस्ति = है), (तेभ्यः = उनके लिये), सः = वह, निर्वाणप्राप्त करने का उपाय. उपदिश्यताम् = उपदेश से समझाया जाये। श्लोकार्थ • हे स्वामिन, ज्ञान के विना उन तप नहीं होता तथा सप के विना उत्कृष्ट केवल ज्ञान भी उत्पन्न नहीं होता है। हे प्रभु वह तप एवं केवलज्ञान संयम सहित व्रत पालन से होता है। उनमें अर्थात् व्रत. तप, संयम आदि में संसारी जीव समर्थ नहीं होते हैं। उनके पास जो थोडा बहुत प्रयास होता है अर्थात् वे एतदर्थ जो कुछ प्रयत्न करते वह निर्वाण पाने हेतु सच्या उपाय नहीं है। इसलिये हे परमप्रभो! अब आप उन्हें वह मार्ग उपदेश देकर समझायें। तद्वाक्यमेवमाकर्ण्य महावीरस्तमनवीत् । संसारिणामपि शिवं यथा स्यात्तत् तथा शृणु ।।७।। __ अन्वयार्थ - एवम् = ऐसे. तद्वाक्यम् = श्रेणिक के वचनों को, आकर्ण्य = सुनकर, महावीरः = भगवान महावीर, तम् = श्रेणिक को, अब्रवीत् = बोले. संसारिणाम् = संसारी जीवों का, अपि = भी, शिवम् = मोक्ष, यथा = जिस प्रकार, स्यात् = होवे, तत् = वह मोक्षप्राप्त्युपाय को, तथा = उसी प्रकार, शृणु = सुनो। __ श्लोकार्थ - राजा श्रेणिक के ऐसे वचनों को सुनकर भगवान महावीर से बोले, हे राजन्! संसारियों को जैसे मोक्ष प्राप्त होता है उसे तुम वैसे ही सुनो। यात्रा सम्मेदशैलस्य भापतो यैनरैः कृता । सर्वार्थसिद्धिसंयुक्ता मुक्तिस्तेषां करे स्थिता ।।८।। अन्वयार्थ - यैः नरैः = जिन मनुष्यों द्वारा, भावतः = भावना से,
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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