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________________ ___ द्वितीया सम्मेदशैलस्य = सम्मेदशिखर पर्वत की. यात्रा - तीर्थवन्दना, कृता = की गई, (वर्तते = है), तेषां = उन मनुष्यों के, करे = हाथ में, सर्वार्थसिद्धिसंयुक्ता = सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र पद प्राप्ति पूर्वक, मुक्तिः = मोक्षोपलब्धि, स्थिता = ठहर जाती श्लोकार्थ - भगवान् महावीर ने कहा कि हे राजन! जो लोगों द्वारा सच्ची भावना से सम्मेदाचल शिखर की तीर्थवन्दना की जाती है, उन मनुष्यों को सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र होने के बाद मुक्ति हो जाती है. मानों उनके हाथ में मुक्ति स्थित हो जाती है। आदौ सिद्धयरस्तत्र कूटः प्रथितः उत्तमः । तत्र स्थितो जितस्वामी केवलेन शिवं गतः ।।६।। __ अन्वयार्थ - तत्रा = उस सम्मेदशिखर पर्वत पर, आदौ = प्रारंभ में, उत्तमः = श्रेष्ठ, सिद्धवरः = सिद्धवर कूट नामक, कूटः = टोंक, प्रथितः = विख्यात, (वर्तते = है), तत्र = उस टोंक पर, केवलेन = केवलज्ञान सहित, शिवं गतः = मुक्त हुये, सिद्ध दशा को प्राप्त, अजितस्वामी = तीर्थङ्कर अजितनाथ, स्थितः = प्रतिष्ठित, (अस्ति = है)। श्लोकार्थ - सम्मेदशिखर पर्वत पर सर्वप्रथम सिद्धवरकूट नामक श्रेष्ठ टोंक विख्यात है। उस टोंक पर ही, केवलज्ञान सहित सिद्धालय को गये तीर्थकर अजितनाथ स्वामी के चरण प्रतिष्ठित हैं। सगरेण कृला यात्रा प्रथमं चक्रवर्तिना । तत्कथां शृणुं राजेन्द्र! प्रथितां भूमिमण्डले ।।१०।। अन्वयार्थ - प्रथम = सबसे पहिले, चक्रवर्तिना = चक्रवर्ती, सगरेण = सगर द्वारा, यात्रा = तीर्थवन्दना, कृता = की गई थी, राजेन्द्र! = हे राजन् श्रेणिक!, भूमिमण्डले = पृथ्वी पर, प्रथितां = प्रसिद्ध हुई, तत्कथां = उस कथा को, (त्वं = तुम), शृणु = सुनो।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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