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________________ ५६६ न हो वैसा ही प्रयत्न उसे करना चाहिये । चतुःपञ्चक्रोशमात्रं अन्वयार्थ बुधः गच्छेत्प्रतिदिनं बुधः । यतो बालास्तथा वृद्धा न क्लिश्नीयुः पथि श्रमात् । ७५ ।। बुधः = विद्वान् या चतुरव्यक्ति, प्रतिदिनं प्रत्येक दिन, चतुः = चार, पञ्च = पाँच, क्रोशमात्रं = कोस मात्र, गच्छेत् जाये, यतः = जिससे बाला: बालक, तथा और, वृद्धाः श्रमात् = परिश्रम से, न = = = बूढे लोग, पथि नहीं, क्लिश्नीयुः = क्लेश करें। मार्ग में श्लोकार्थ विद्वान् या चतुर व्यक्ति मात्र चार पाँच कोश ही एक दिन में जायें जिससे बाल वृद्धादि लोग भी मार्ग श्रम हो जाने से क्लेश रूप दुःख को प्राप्त न होवें । - - - आहारदानं शास्त्रस्य दानमौषधदानकम् | तथा चाभयदानञ्च दात् संघान क्तिः ७६ ।। अन्वयार्थ तथा च = और, संघाय चतुर्विधसंघ के लिये, भक्तितः = भक्तिभाव से. आहारदानं = आहार दान को शास्त्रस्य = शास्त्र के दानं = दान को औषधिदानकं औषधि दान को. च = और, अभयदानं = अभयदान को दद्यात् देवे । श्लोकार्थ और वह यात्री चतुर्विध संघ को भक्तिभाव से आहारदान, शास्त्रदान, औषधिदान एवं अभयदान देवे । 1 श्रीमद्भट्टारकानाञ्च जैनधर्मविदां - श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ - = = किल । यथास्थितानि दानानि दद्याद् दाताप्रमाणतः । ७७ ।। = .. = जिनाज्ञा के प्रमाण से, (तथा = वैसे) दानानि 1 दाता दान देने वाला, प्रमाणतः = यथास्थितानि जैसे जो स्थित है, - दान के लिये देय वस्तुों को, किल निश्चित ही, जैनधर्मविदां जैनधर्म के ज्ञाताओं के, च = श्रीमद् भट्टारकानां श्रीसम्पन्न भट्टारकों के, (कृते = लिये) दद्यात् देवे । - श्लोकार्थ जिन आज्ञा प्रमाण से ही यथा स्थित दान योग्य वस्तुओं को निश्चित ही योग्य लोगों जैसे भट्टारक एवं जैनधर्म के ज्ञाता विद्वानों के लिये देवे।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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