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________________ एकविंशतिः यात्रा - तीर्थवंदना रूप यात्रा, भवेत = हो, अथवा = अथवा, बुधः - विद्वान, यत्नतः = यत्न से, (अत्र = यहाँ) आगत्य : आकर, (यात्रायाः = यात्रा के), आदौ = प्रारंभ में, तथा च = और, अ - अन्त में यादिकं = रथ यात्रा आदि को, कुर्यात् = करे। श्लोकार्थ - और फिर गज प्रतिष्ठा पूर्वक रथ यात्रा को, जिनबिम्बप्रतिष्ठा को और इन्द्रध्वज आदि शुभ पूजन को प्रारंभ में करके सम्मेदशिखर की तीर्थवन्दना रूप यात्रा होवे । अथवा विद्वान यहाँ आकर यात्रा के प्रारंभ में और अन्त में रथयात्रा आदि को करे। यथाशक्त्याथवा कृत्या यात्रां कुर्याद् गिरीशितुः । वस्त्रादिवस्तुसाहाय्यं विदध्यात्सार्धगामिनाम् । ७३|| अन्वयार्थ · अथवा = अथवा, यथाशक्त्या = जैसी शक्ति है उसके अनुसार से, (उपर्युक्तं = उपर्युक्त को) कृत्वा = करके, गिरीशितुः = गिरिराज की, यात्रा = तीर्थवंदना को, कुर्यात् ८ करे । सार्धगामिनाम् = साथ चलने वालों के, (कृते -- किये), वस्त्रादिवस्तुसाहय्यं = वस्त्रादिक वस्तुओं की सहायता को, विदध्यात् = करे। श्लोकार्थ - अथवा अपनी जैसी शक्ति है उसके अनुसार ही उपर्युक्त रथयात्रादिक को करके गिरिराज की वंदना रूप यात्रा को करना चाहिये तथा साथ में चलने वालों के लिये वस्त्रादि वस्तुओं से सहायता करनी चाहिये। भारवाट्सु यथायोग्यं दद्यात् भारं विचार्य सः।। यथा दुःखी न कोऽपि स्यात्तथा कुर्यात्प्रयत्नतः ।।७४।। अन्वयार्थ - सः = वह यात्री, भारं = भार का, विचार्य = विचार करके, भारवाट्सु = भार उठाने वालों में, यथायोग्यं = उचित भार को (हि = ही). दद्यात् = देवे, च = और, यथा = जैसे, कोऽपि = कोई भी, दुःखी - दुःखी, न = नहीं, स्यात् = होवे, तथा = वैसा, प्रयत्नतः - प्रयत्न से, कुर्यात् = करना चाहिये। श्लोकार्थ - सम्मेदशिखर का वह तीर्थयात्री भार का विचार करके यथायोग्य भार ही भारवाहकों को देवे और जैसे कोई भी दुःखी
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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