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________________ ( ९ ) यही और परम पुरुषार्थ है। जिस स्थान पर निर्माण होता है उस स्थान पर इन्द्रदेव पूजा को आते हैं तथा चरण चिह्न स्थापित कर देते हैं । तीर्थकरों के निर्वाण क्षेत्र कुल पाँच हैं- कैलाशपर्वत, चम्पापुरी, पावापुरी, ऊर्जयन्त और सम्मेदशिखर । कैलाश पर्वत से भगवान् ऋषभदेव, चम्पापुरी से श्री वासुपूज्य स्वामी, गिरनार से नेमिनाथ स्वामी, पावापुरी से महावीर स्वामी ने कर्मों को नाश कर शाश्वत सुख को प्राप्त किया। सम्मेदशिखर से । २० तीर्थकरों ने कठार आत्म-साधना कर कर्मों को नाश कर अविनाशी सुख को प्राप्त किया । निर्वाण क्षेत्र के दर्शन करने से आत्मिक शान्ति, लाभ तथा उस क्षेत्र की वंदना के साथ उन महापुरुषों के आदर्श अनुप्रणित होकर आत्म-कल्याण की भावना बन जाती है । तीर्थयात्रा कैसे करें ? यों तो तीर्थयात्रा कभी भी की जा सकती है। जब भी यात्रा को जाये, पुण्य संचय होगा ही होगा। किन्तु अनुकूल द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव देखकर यात्रा करना अधिक उपयोगी रहता है । द्रव्य की सुविधा होने पर यात्रा करना अधिक फलदायक होता है। यदि यात्रा के लिए द्रव्य की अनुकूलता न हो, द्रव्य का कष्ट हो और यात्रा के निमित्तं कर्ज लिया जाये तो उससे यात्रा में निश्चितता नहीं आ पाती, संकल्प-विकल्प बने रहते हैं। यात्रा पर जाने के बाद मन में किसी भी प्रकार के विचार मन में नही आने चाहिये तथा मन की स्थिरता चाहिये तभी यात्रा करना शुभ एवं श्रेष्ठ हैं। यात्रा करने से पापों से मुक्ति और आध्यात्मिक शान्ति प्राप्त करना है। तीर्थयात्रा में विनय, श्रद्धा भक्ति आदि गुणों का होना अनिवार्य हैं | तीर्थयात्रा जाते समय क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष एवं कषायों की पूर्ति हो ऐसे कार्य मन, वचन, काय से नहीं करें। प्राणी मात्र के कल्याण की भावना मन में रखें तथा संसार - मार्ग से छूटने का प्रयत्न करें। जैनधर्म जो सदैव कल्याण के लिए समर्पित रहा है, विश्व के ग्लोब में चाहे जैसे रंग बदले हों लेकिन इन रंगों को नजरअंदाज करते हुए सदैव पृथ्वीवासियों को शान्ति और प्रेम का संदेश दिया है, आज हम विश्व की जो व्यवस्थाएं देख रहे हैं। मानव जाति न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से अपितु जीवन की अन्य व्यवस्थाओं से भी अविकसित थीं। यह विश्व कैसे विसरा पायेंगा। तीर्थंकर ऋषभदेव को जिन्होंने मानव-जाति को जीवन जीने का सुव्यवस्थित मार्ग दिया। जिस विकसित युग में आज हम रह रहे हैं उनके विकास का सबसे बड़ा श्रेय भगवान् ऋषभदेव को है। उन्होंने मानवता को एक ओर जहाँ आध्यात्मिक उन्नति की प्ररेणा दी वहाँ दूसरी ओर लोक-जीवन के बहुमुखी विकास में भी मार्गदर्शन दिया ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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