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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य कथा को कहता हूं तथा उसके बाद पार्श्वनाथ की कूट के
माहात्म्य को कहूंगा हे भव्य पुरुषों! तुम सब उसे सुनो। जम्बूनाम्नि महाद्वीपे भरतस्य महीयसः । क्षे कास्यभिधी देशो सत्र पासणसी पुरी ।।४।। मणिभिर्जडिता सा तु परितः सुखमाकरा |
तत्रानन्दभिधो राजा राज्यं चक्रे सुखान्वितः ।।५।। अन्वयार्थ - जम्चूनाम्नि = जम्बूनामक, महाहीपे = विशाल द्वीप में,
महीयसः - अपेक्षाकत बडे, भरतस्य = भरत, क्षेत्रे - क्षेत्र में, काश्याभिधो = काशी नामक, देश: = देश, तत्र = यहाँ, वाराणसी - वाराणसी, पुरी = नगरी, आसीत् = थी. सा = वह मणिभिः = मणियों से, जडिता = खचित, परितः = चारों तरफ से, आकरा = संदर, एवं खान स्वस्थ (आसीत = थी), तत्र = उस नगरी में, सुखान्वितः = सुख से पूर्ण, आनन्दाभिधः -- आनन्द नामक, राजा = राजा, सुखं = सुखपूर्वक, राज्य
= राज्य को, चक्रे .. करता था। श्लोकार्थ - जम्बू नामक विशाल द्वीप में अपेक्षा कृत बड़े भरत भूभाग के
क्षेत्र में एक काशी नामक देश था उस देश में एक वाराणसी नगरी थी। वह नगरी रत्नों से परिपूर्ण और चारों तरफ से सुन्दर व श्रेष्ठ थी। उस नगरी में सुख से परिपूर्ण आनन्द
नामक राजा सुखपूर्वक राज्य करता था। एकस्मिन्समये राजा राज्यभोगसुखोद्गमात् । ददर्श मुखमादर्श प्रीत्युत्फुल्लेक्षणाम्बुजः ।।६।। शुक्लकेशान्मुखे वीक्ष्य विरक्तोऽभून्महीपतिः । मुनि समुद्रदताख्यमभिवन्ध तथैव सः ।।७।। सकाशात्तस्य बहुभिः भूमिपालैस्समं मुदा ।
दीक्षां जग्राह पुण्यात्मा परमार्थप्रसिद्धये ।।८।। अन्वयार्थ - एकस्मिन् = एक समये = समय, राज्यभोगसुखोदगमात् =
राज्य भोग सम्बन्धी सुखों के उद्भव से, प्रीत्युत्फुल्लेक्षणाम्बुजः = प्रसन्नता से विकसित नेत्र कमल वाले, राजा - उस राजा ने.. आदर्श = दर्पण में, मुखं = मुख को, ददर्श = देखा। तथा = और मुखे = मुख में, शुक्लकेशान् = सफेद बालों