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________________ अथैकविंशमोऽध्यायः यत्पदाम्भोजरूहध्यानात् पार्श्वगा सिद्धिरूत्तमा । मनसा तच्चरणपार्श्वः पार्श्वनाथमुपाश्रये ।।५।। अन्वयार्थ - यत्पदाम्भोरूहध्यानात् = जिनके चरण कमलों के ध्यान से, उत्तमा = श्रेष्ठ, सिद्धिः = मुक्ति, पार्श्वगा = निकटवर्ती या समीपस्थ. (भवति = होती है), मनसा = मन से, तच्चरणपार्श्वः = उनके चरणों का पार्श्ववर्ती, (अहं = मैं), पाश्वनाथम् = पाचीथ भगवान के, उपाश्रये = पास आश्रय लेता हूँ। श्लोकार्थ - जिनके चरणकमलों के ध्यान से सर्वश्रेष्ठ मुक्ति निकटवर्ती या समीपस्थ हो जाती है उन तीर्थकर पार्श्वनाथ का मैं मन से उनके चरणों का पार्श्ववर्ती होकर आश्रय लेता हूँ। मुकटं सप्तफणिकं यस्य भूर्ध्नि विराजते । नीलवर्णं तमीशानं पार्श्वनाथमुपास्महे ।।२।। अन्वयार्थ - यस्य = जिनके. मूर्ध्नि = सिर पर, सप्तफणिकं = सात फणों वाला, मुकुटं = मुकुट, विराजत = सुशोभित होता है, तं = उन, नीलवर्ण = नीलवर्ण वाले, ईशानं = प्रभु, पार्श्वनाथं का पार्श्वनाथ की. (अहं = मैं), उपास्महे = उपसना करता हूँ। श्लोकार्थ - जिनके सिर पर सात फणों वाला मुकुट सुशोभित होता है उन नील वर्ण वाले प्रभु पार्श्वनाथ की मैं उपासना करता हूँ। कथां तस्य प्रवक्ष्येऽहं पञ्चकल्याणदीपिताम् । ततः तत्कूटमाहात्म्यं श्रुणुध्वं भव्यसत्तमाः ।।३।। अन्वयार्थ - अहं = मैंः तस्य - उनकी, पञ्चकल्याणदीपितां = पञ्चकल्याणकों से सुशोभित, कथां - कथा को, ततः = उसके बाद अर्थात् कथा वर्णन के बाद, तत्कूटमाहात्म्यं = उनके कूट की महिमा को, प्रवक्ष्ये = कहता हूं या कहूंगा, भव्यसत्तमाः = हे भव्य पुरुषों!, श्रुणुध्वं = सुनो। श्लोकार्थ - अब मैं उन पार्श्वनाथ की पञ्चकल्याणकों से दीपित सुशोभित
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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