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________________ ५६७ विंशतिः श्लोकार्थ . उस सम्मेदशिखर पर्वत पर मित्रधर नामक सुन्दर कूट पर पहुँचकर प्रभु स्थित हो गये। वहाँ श्रेष्ठ योग को धारण कर और शुभ-शुक्लध्यान में तल्लीन उन भगवान ने केवलज्ञान से निष्कर्म सिद्धि को प्राप्त करके दीक्षित हुये मुनियों के साथ संसार में दुर्लभ मुक्ति को प्राप्त कर लिया। तदा त्वेकार्बुदनवशतकोट्युक्तकोट्युक्त्तकोटिका। पञ्चचत्वारिंशदुक्तलक्षा सप्तसहमिणः ।।५४ ।। नयोक्तशतिका द्वयन्तचत्वारिंशमुधुता तथा । एतया संख्यया प्रोक्ता भव्यास्तस्माच्छिवं गताः ।।५५।। अन्वयार्थ - तदा = तभी, एकार्बुदनवशतकोट्युक्तकोटिका = एक अरब गौ सौ कोड़ा-कोड़ी, पञ्चचत्वारिंशदुक्तलक्षाः = पैंतालीस लाख, सप्तसहस्रिणः = सात हजार, नवोक्तशतिकाः = नौ सौ, द्वयन्तचत्वारिंशमुद्युताः = बयालीस. प्रसन्नता से युक्त, एतया = इस, संख्यया = संख्या से, प्रोक्ताः = कहे गये, भव्याः = भव्य जीव, तस्मात् = उस कूट से. शिवं = मोक्ष को. गताः -- गये। श्लोकार्थ . तभी एक अरब नौ सौ कोडा कोड़ी पेंतालीस लाख सात हजार बयालीस भव्य जीव हर्ष से युक्त होते हुये उसी कूट से मोक्ष को गये। तत्पश्चान्मेघदत्ताख्यो नृपः सङ्घप्रपूजकः । यात्रां गिरिवरस्यामुष्य चक्रे तस्य कथोच्यते ।।५६।। अन्वयार्थ - तत्पश्चात् = उसके बाद, सङ्घप्रपूजकः = चतुर्विधसंघ की पूजा करने वाले, मेघदत्ताख्यः = मेघदत्त नामक नृपः = राजा ने, अमुष्य = इस, गिरिवरस्य = गिरिवर सम्मेदशिखर की. यात्रां = यात्रा, चक्र = की थी, तस्य = उसकी, कथा = कथा. उच्यते = कही जाती है। श्लोकार्थ - उसके बाद चतुर्विधसंघ के पूजक मेघदत्त नामक राजा ने इस गिरिवर सम्मेदशिखर की यात्रा की। उसकी कथा अब यहाँ कही जाती है।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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