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________________ शितिः वेलोपवासकृदेवो नववर्षाणि मौनभाक् । तपः उग्रं चकारसौ घातिकर्मविनाशकम् ।।४७।। तदैव वनमासाद्य भूयोऽसौ तपसोज्ज्वलम् । पूर्णिमायां मार्गशीर्षे केवलज्ञानवानभूत् ।।४।। अन्वयार्थ - वेलोपवासकृत् = वेला उपवास करने वाले. नववर्षाणि = नौ वर्ष तक, मौनभाक = मौनव्रत धारण करने वाले, असौ = उन, देवः = मुनिराज ने, घातिकर्मविनाशकं = घातिकर्म का नाश करने वाले, उग्रं = कठोर, तपः = तपश्चरण को, चकार = किया. तदैव -- उस ही समय. असौ = बह, भूयः = पुनः तपसोज्ज्वलं = तपसोज्ज्वल या तपश्चरण से पवित्र, वनं - वन को. आसाद्य = प्राप्त करके, मार्गशीर्षे = मार्गशीर्ष माह में, पूर्णिमायां = पूर्णिमा के दिन, केवलज्ञानवान् = केवलज्ञानी, अभूत् = हुये। श्लोकार्थ - वेला नामक उपवास करने वाले और नौ वर्ष तक मौनव्रत का पालन वाले मुनिराज ने घातिकर्मों को नाश करने में समर्थ कठोर तपश्चरण किया। तभी वह प्रभु तप से उज्ज्वल अर्थात् पवित्र या तपसोज्ज्वल नामक वन में पहुंचकर मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को केवलज्ञानी हो गये। ततः समवसारेऽसौ धनदादिविनिर्मिते । सुप्रभायैस्तथा चान्यैः भव्यैादशकोष्ठगैः ।।४६ ।। स्तुतः सम्पूजितो भव्यजनैः सम्पृष्ट ईश्वरः । दिव्यध्वनिं समुत्सार्य चक्रे तत्त्वादिवर्णनम् ।।५०।। अन्वयार्थ - ततः = केवलज्ञान होने के बाद, धनदादिविनिर्मिते = कुबेर आदि द्वारा रचित. समवसारे = समवसरण में, द्वादशकोष्टगैः = बारह कोठों में स्थित, सुप्रभाद्यैः = सुप्रभ आदि गणधरों द्वारा, तथा च = और, अन्यैः = अन्य, भव्यैः = भव्यों द्वारा, स्तुतः = स्तुति किये जाते हुये, (च = और). सम्पूजितः = पूजे जाते हुये, भव्यजनैः = भव्य जनों से, सम्पृष्टः = पूछे जाते हुये. असौ = उन. दिव्यध्वनि = ईश्वरः = भगवान् ने,
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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