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________________ भी सम्मेदशिखर माहात्य श्लोकार्थ - इसके बाद आश्विन कृष्णा द्वितीया को रात्रि के अंतिम समय में उस रानी ने अपने भाग्य से सोलह स्वप्नों को देखा। तदन्ते द्विरदं मत्तं विशदं सुभगाकृतिम् । मुखे प्रविष्टमालोक्य प्रबुद्धा पतिमन्वगात् 1।२६।। अन्वयार्थ - तदन्ते - स्वप्नदर्शन के अन्त में, सुभगाकृति = सुन्दर आकार वाले, विशदं = स्वच्छधवल, मत्तं = मदोन्मत्त, द्विरदं = हाथी को, मुखे = मुख में, प्रविष्टं = प्रविष्ट होता हुआ. अवलोक्य = देखकर, प्रबुद्धा = जागी हुयी, (सा = वह), पतिम् = पति के, अन्वगात् = पास गयी । श्लोकार्थ - स्वप्न दर्शन के अन्त में एक सुन्दर आकार वाले धवल और मदोन्मत्त हाथी को अपने मुख में प्रविष्ट होता हुआ देखकर वह रानी जाग गयी और पति के पास गयी। तत्रोच्चार्य क्षितीट् स्वप्नान् तत्फलं पतिवक्त्रतः ।। श्रुत्या सा वचनान्यत्यन्तं महामोदमवाप हि ।।७।। अन्वयार्थ - तत्र = वहाँ अर्थात् पति के यहाँ, क्षितीट् = राजा को, स्वप्नान् = स्वप्नों को. उच्चार्य = कहकर, पतिवक्त्रतः = पति के मुख से. तत्फलं = उसके फल को. (च = और), वचनानि = वचनों को. श्रुत्वा = सुनकर, सा = वह रानी. अत्यन्तं = अत्यधिक. महामोदं = महानंद को, हि = ही, अवाप = प्राप्त कर लिया। श्लोकार्थ • पति के सामने उन सोलह स्वप्नों को राजा से कहकर पति के मुख से उसके फल को और पति के वचनों को सुनकर वह रानी अत्यधिक विपुल आनंद को प्राप्त हुई। अहमिन्द्रोऽवतीर्यासौ तहिने त्रिजगत्पतिः । तद्गर्भ दिक्कुमारिभिः शोधितं प्रायिशद्विभुः।।२८।। अन्ययार्थ - तद्दिने = उस दिन, त्रिजगत्पतिः = तीनों लोक के स्वामी स्वरूप, विभुः - तीर्थङ्कर प्रमु. असौ = वह, अहमिन्द्रः = अहमिन्द्र का जीव. अवतीर्य = उतरकर, दिक्कुमारिभिः = दिक्कुमारियों द्वारा, शोधितं = शोधे गये, तदगर्म = उस रानी के गर्भ में, प्राविंशत् = प्रविष्ट हुआ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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