SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 579
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विंशतिः 4ধুও धारण करने वाला था। उस राजा की पूर्णमासी के चन्द्रमा के समान मुख वाली वप्रा नामक एक रानी थीं। विचित्र भाग्य की स्वामिनी वह रानी राजा के लिय अत्यधिक प्रिय थी। तया सह महीपालः शच्या सह हरियथा । अन्वभूद् भोगमतुलं पूर्वपुण्योद्भवं तथा ।।२३।। अन्ययार्थ • यथा = जैसे, हरिः = इन्द्र ने, शच्या सह = शची के साथ, तथा = वैसे, महीपालः = राजा ने, तया = उस वप्रा रानी के, सह = साथ. पूर्वपुण्योद्भवं = पूर्वकालिकपुण्य से उदमूत, अतुलं = अतुलनीय. भोगं = भोग को, अन्धभूत = भोगा । श्लोकार्थ - उस राजा ने वैसे ही उस रानी के साथ पूर्व पुण्य के उदय से उत्पन्न अतुलनीय भोगों का अनुभव किया जैसे इन्द्र शची के साथ करता है। अकि षण्मासतस्तस्य वेश्मनीन्द्रनिदेशतः । रत्नवृष्टिं चकारोच्चैः धनेशो धन्यभागभूत् ।।२४ ।। अन्वयार्थ - तस्य :- उस राजा के, वेश्मनि = महल में, षण्मासतः = छह महिने से. अर्वाक = पहिले ही. इन्द्रनिदेशतः = इन्द्र की आज्ञा से, धनेशः = कुबेर ने, उच्चैः = अत्यधिक, रत्नवृष्टिं = रत्नों की वर्षा को, चकार = किया. (च = और), धन्यभाग = धन्य भाग घाला, अभूत् = हुआ । श्लोकार्थ - उस विजयसेन राजा के महल में छह महिने पहिले से ही ___इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने रत्नों की बरसात की और स्वयं धन्य हो गया। अथाश्विने कृष्णपक्षे द्वितीयायां नृपप्रिया। अपश्यत् षोडशान्स्वप्नान् यामिन्यन्ते स्वभाग्यत: ।।२५।। अन्वयार्थ - अथ = इसके बाद, आश्विने = आश्विनमास में, कृष्णपक्षे = कृष्णपक्ष में, द्वितीयायां = द्वितीया तिथि में. नृपप्रिया = राजा की प्रिय रानी ने, स्वभाग्यतः = अपने भाग्य से, यामिन्यन्ते = रात्रि के अंतिम प्रहर में, षोडशान् = सोलह, स्वप्नान् = स्वप्नों को, अपश्यत् = देखा ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy