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________________ ५५६ अवतरण के चरित्र को, वक्ष्ये = कहता हूं। श्लोकार्थ - अब मैं सज्जनों को सिद्धि लाभ के लिये उस देव के अवतरण की उस कथा को कहता हूँ जो सुनने और पढ़ने से निश्चित ही सारे कार्यों को सिद्ध करने वाली है । . द्वीपे जम्बूमति ख्याते क्षेत्रे भरतभूभृतः । यङ्गदेशे पुरी रम्या मिथिलाख्या मता सताम् ।। २० ।। अन्वयार्थ जम्बूमति = जम्बू वृक्ष वाले, द्वीपे द्वीप में ख्याते विख्यात, भस्तभूभृतः = भरत भूभाग के क्षेत्रे क्षेत्र में. बंगदेशे बङ्गदेश में सतां सज्जनों के लिये, रम्या रमणीय, मिथिलाख्या - मिथिला नाम की, नगरी मता · = = = पुरी : मानी गयी है। श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य - = ▾ H = = श्लोकार्थ जम्बूद्वीप में विख्यात भरत क्षेत्र के भूभाग में विद्यमान बङ्गदेश में मिथिला नामक नगरी सज्जनों के लिये परम रमणीय मानी गयी है । = = इक्ष्वाकुवंशे तत्रासीत् काश्यपे गोत्र उत्तमे । राजा विजयसेनाख्यो महाधर्मधुरन्धरः । । २१ । । यप्राख्या तस्य महिषी पूर्णेन्दुसदृशानना । विचित्रभाग्यराशिः सा बभूव नृपवल्लभा ।। २२ ।। अन्वयार्थ तत्र = उस मिथिला नगरी में इक्ष्वाकुवंशे = इक्ष्वाकुवंश में, उत्तमे उत्तम काश्यपे = काश्यप गोत्रे गोत्र में, विजयसेनाख्यः = विजयसेन नामक महाधर्मधुरन्धरः = धर्म की धुरा को धारण करने वाला महान् राजा राजा, आसीत् = था तस्य = उस राजा की, वप्राख्या = वप्रा नामक, पूर्णेन्दुसदृशानंना = पूर्णमासी के चन्द्र समान मुख वाली, महिषी = रानी (आसीत् = थी) विचित्रमाग्यराशिः = विचित्र भाग्य की स्वामिनी, सा = वह रानी, नृपवल्लभा = राजा के लिये प्रिय, बभूव = हुयी । = श्लोकार्थ उस मिथिला नगरी में इक्ष्वाकुवंश में उत्तम काश्यप गोत्र में विजयसेन नामक एक महान् राजा हुआ जो धर्म की धुरा को
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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