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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
का अनूत्तमम् = अति उत्तम, मन्द्रनिर्घोषम् = गंभीर घोषणा, अकारयत् = करवाया !
श्लोकार्थ - राजा श्रेणिक ने हाथी, घोड़े, रथ आदि को सजवाकर दुन्दुभि का अत्युत्तम गंभीर घोष करवाया ।
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कुमाराः सज्जिताः सर्वे स्वदीप्त्यानङ्गसन्निभाः । सज्जिता नरनार्यश्च तद्वदेव सुखोद्गमात् ।।११५ ।। अन्वयार्थ तद्वदेव = उनके समान ही सुखोद्गमात् - सुख का उद्गम होने से, सर्वे = = सारे, स्वदीप्त्या = अपनी कान्ति से, अनङ्गसन्निभाः = कामदेव के सदृश कुमाराः = राजकुमार, नरनार्यश्च = और नर-नारी, सज्जिताः तैयार हो गये, (आसन् = थे) ।
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श्लोकार्थ राजा श्रेणिक के समान ही राजकुमारों और सभी नर-नारियों में भी सुख का उदभव या संचार होने से वे सज्जित हो गये थे । यहाँ राजकुमारों को अपने विलक्षण तेज के कारण कामदेव के समान वर्णित किया गया है।
चेलनादेविकायुतः ।
सर्वांस्तान्सर्वगान्कृत्वा अष्टद्रव्याणि सगृस्य पूजार्थं शुद्धभावतः ||११६||
पुलकोद्गमलक्ष्यतः ।
महावीरेक्षणाकांक्षी श्रेणिकस्तत्र सम्प्राप्तो देवं भव्यदयानिधिम् ||११७ ||
अन्वयार्थ तान् = उन राजकुमारों और नर नारियों, सर्वान् = सभी को, सर्वगान् (प्रति) = सर्वज्ञ की ओर, कृत्वा = करके, शुद्धभावतः = शुद्ध भावों से, पूजार्थं पूजा करने के लिये अष्टद्रव्याणि = जलचन्दनादि आठों द्रव्यों को सङ्गृह्य = लेकर, पुलको द्गमलक्ष्यतः- रोमांचित अर्थात् गद्गद होकर उससे उत्पन्न आनंद को लक्ष्य करने से, महावीरेक्षणाकांक्षी = भगवान महावीर को देखने की आकांक्षा वाला, चेलनादेविकायुतः चेलना देवी से सहित, श्रेणिकः = राजा श्रेणिक, तंत्र
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