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प्रथमा
भूषणान्यनपालाय महावीरमनुध्याय
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दिशा में सात पद-कदम सम्मुख जाकर उस राजा ने भगवान महावीर को प्रणाम किया।
राजानन्तसुखं
गतः । ।११२ ।।
अन्वयार्थ - वनपालाय = वन रक्षक या माली के लिये, भूषणान्
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आभूषणों को, दत्त्वा = देकर तं प्रशस्य - प्रशंसा करके, (च
उसकी, सम्यक् = सही, और), महावीरं = भगवान्
महावीर का अनुध्याय ध्यान करके, राजा = राजा श्रेणिक, अनन्तसुखं अत्यधिक हर्ष को गतः = प्राप्त हुआ ।
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सम्यग्दत्त्वा प्रशस्य तम् ।
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श्लोकार्थ वनपाल के लिये अपने आभूषण देकर, उसकी सच्ची प्रशंसा करके और भगवान् महावीर का ध्यान करके राजा अतिशय आनंद को प्राप्त हुआ ।
समादिशत् बोधकरांस्तदाज्ञप्ताश्च ते यदा ।
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भेर्यादिवाद्यसद्घोषं
अन्दयार्थ (स = उस राजा ने), बोधकरान् = भेरी ताड़न कर सूचना देने वालों को, समादिशत् आदेश दिया, तदाज्ञप्ताः च = और राजा की आज्ञा को प्राप्त हुये, ते = उन भेरी ताड़क सूचना देने वालों ने श्रवणसौख्यदं कानों को सुख प्रदान करने वाला, भेर्यादिवाद्यसद्घोषं = भेरी आदि को बजाकर सद्घोषणा, चक्रुः = कर दी।
चक्रुः श्रवणसौख्यदम् ||११३ | |
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श्लोकार्थ राजा ने भेरी बजाकर सूचना देने वालों को आदेश दिया।
राजा की आज्ञा पाकर उन लोगों ने कानों को सुख देने वाली भेरी आदि वाद्य बजाकर सद्घोषणायें कीं । वारणाश्वरथादींश्च सज्जयित्वा नरेश्वरः । दुन्दुभेर्मन्द्रनिर्घोषमकारयदनुत्तमम् । ।११४ । ।
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अन्वयार्थ नरेश्वरः राजा श्रेणिक ने, वारणाश्वरथादीन् हाथी, घोड़े रथ आदि को, सज्जयित्वा = सजाकर दुन्दुभेः = दुन्दुभि