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श्रुत्वा पुलकितो स्वसमाजसमेतोऽयं
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अन्वयार्थ महावीरम् भगवान् महावीर को, उपागतम् समीपवर्ती विपुलाचल पर्वत पर आया हुआ, श्रुत्वा = सुनकर, पुलकितः = प्रसन्न होता हुआ, अयं यह राजा राजा श्रेणिक, स्वसमाजसमेतः = अपने परिवार अथवा समाज जनों सहित, महानंदमनः = अत्यधिक आनंदित मन वाला, अभवत् हो गया।
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
देखकर, वहाँ से सभी ऋतुओं के वनवृक्षों में फला फूला देखकर, वहाँ से सभी ऋतुओं के फल लेकर राजा श्रेणिक के समीप पहुंचा और उसने पुष्प राजा के आगे रखकर कहा कि हे राजन् ! सुनो अपने इस विपुलाचल पर्वत पर महान् आनन्दकारी और शुभ लक्षणों वाला भगवान् महावीर का समवसरण आया है। यही बात बताने के लिये हर्षित होता हुआ मैं आपके सम्मुख उपस्थित हुआ हूं ।
राजा
श्लोकार्थ समीपवर्ती विपुलाचल पर्वत पर भगवान् महावीर आये हुये हैं यह सुनकर राजा श्रेणिक प्रसन्नता से पुलकित होकर अपने परिवार समाज सहित महान् आनंद से भरपूर मन वाला हो गया ।
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महावीरमुपागतम् ।
महानंदमनोऽभवत् । ।११० । ।
यस्यां दिशि समायातः प्रभोः
समवसारकः ।
तत्संमुखं पदं सप्त गत्या तं प्रणनाम सः । ।१११ || अन्वयार्थ यस्यां दिशि = जिस दिशा में प्रभो: जिस दिशा में प्रभोः = भगवान् का. समवसारक: = समवसरण, समायातः आया था, तत्संमुखं = उस दिशा में सम्मुख, सप्त = = जाकर, सः = उस राजा ने तं प्रणनाम = प्रणाम किया ।
श्लोकार्थ भगवान् महावीर का समवसरण जिस दिशा में आया था, उस
सात, पढ़ें = कदम, गत्वा
भगवान् महावीर को,