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विंशतिः
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श्लोकार्थ जम्बूद्वीप के अति पावन भरत क्षेत्रवर्ती आर्यखण्ड में जगतीतल में विख्यात एक कौसल नाम का देश था । कौशाम्बी नगरी यत्र यमुनापूरशोभिता | तस्यामिक्ष्वाकुवंशेऽभूत् पार्थो नाम महीपतिः । । ४ । । सिद्धार्था तस्य महिषी महापुण्या शुचिव्रता । सुन्दरीणां सुन्दरी सा सत्कीर्तिपरिशोभिता । । ५ । । अन्वयार्थ यत्र = जिस देश में यमुनापूरशोभिता = यमुना नदी से सुशोभित, कौशाम्बी = कौशाम्बी नगरी नगरी, (आसीत् = थी), तस्यां - उस नगरी में इक्ष्वाकुवंशे इक्ष्वाकुवंश पार्थ, नाम = नामक महीपतिः - राजा अभूत् : हुआ था, तस्य उस राजा की, सिद्धार्था = सिद्धार्थानामक, महापुण्या = गुण्यालिनी, शुचिव्रत त्राल करने से पवित्र महिषी = रानी (आसीत् थी), सा सत्कीर्तिपरिशोभिता = सौन्दर्य की ख्याति से अच्छी तरह सुशोभित होती हुई, सुन्दरीणां = सुन्दरियों की सुन्दरी : सुन्दरी, ( आसीत् = थी ) ।
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में, पार्थः
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= वह.
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श्लोकार्थ जिस कौसल देश में ही यमुना नदी से सुशोभित कौशाम्बी नामक नगरी थी। उस नगरी में ही इक्ष्वाकुवंश में एक पार्थ नामक राजा हुये। उनकी सिद्धार्था नामक रानी अत्यधिक पुण्यशालिनी और व्रतों के पालन से पवित्र थी। वह अपनी सुन्दरता की कीर्ति से अच्छी तरह सुशोभित होती हुयी सुन्दरियों की भी सुन्दरी अर्थात् सर्वाधिक सुन्दरी थी । तया सह महीपालो नीतिविन्नीतिवित्प्रियः ।
सांसारिक सुखं मुख्यं बुभोज चिरमुत्तमम् || ६ ||
अन्वयार्थ तया उसके सह = साथ, नीतिवित्
श्रेष्ठ,
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नीतिज्ञ, नीतिवित्प्रियः = नीतिज्ञों के लिये प्रिय महीपालः = राजा ने, चिरं = चिरकाल तक, मुख्यं सांसारिकं = सांसारिक सुखं श्लोकार्थ उस रानी के साथ चिरकाल तक उस नीतिमान् और नीतिविद्
प्रमुख, उत्तमं सुख को बुभोज = भोगा ।
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