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________________ ५४६ पश्चान्मधुवनं गत्वा च सबलः प्राप्यसत्वरम् । गतः सम्मेदशैलस्योपरि श्रीरामचन्द्रकः ||६८ ।। अन्वयार्थ - पश्चात् = उसके बाद, मधुवनं मधुवन को, गत्वा = जाकर, च - और, सत्वरं शीघ्रता को प्राप्य पाकर, (स: वह ). श्री रामचन्द्रकः - श्री रामचन्द्र सबल सेना सहित. सम्मेदशैलस्य सम्मेदशिखर के उपरि - ऊपर, गतः = पहुँच गये। = · श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य प्रसन्न होकर तथा आनन्द भेरी बजवाकर परिवार के साथ सोत्साह पूर्वक मुनिसुव्रत नाथ की पूजा करने के लिये चल दिया तथा अठारह अक्षौहिणी सेना सहित शुभ स्थान स्वरूप पीताम्बर वन में जाकर उन्होंने हर्षान्वित होकर समवसरण में मुनिसुव्रतनाथ की पूजा की। श्लोकार्थ - तत्पश्चात् मधुवन जाकर और शीघ्रता करके वह श्री रामचन्द्र राजा सम्मेदपर्वत के ऊपर चले गये । तत्र गत्वा निर्जराख्यं ववन्दे कूटमुत्तमम् । अष्टधा पूजयामास श्रद्धया परमं प्रभुः ||६६ ।। - अन्वयार्थ तन्न = उस सम्मेदशिखर पर गत्वा = जाकर परमं उत्कृष्ट, (च और), उत्तमं = उत्तम, निर्जराख्यं = निर्जर नामक कूट को प्रभुः राजा ने ववन्दे = और), श्रद्धया = श्रद्धा से अष्टधा से, पूजयामास जा की। श्लोकार्थ उस सम्मेदशिखर पर जाकर उस राजा ने उस उत्तम और परम निर्जर कूट को प्रणाम किया तथा श्रद्धा सहित आठ प्रकार के द्रव्यों से उस कूट की पूजा की । = - - = अन्वयार्थ एवं = इस प्रकार, ਰ - एवं सम्पूज्य सम्मेदकूटं तं निर्जराह्वयम् । कीर्तिसिन्धुरभूः श्रीमद्रामचन्द्रो महीपतिः । । ७० ।। = = प्रणाम किया. (च आठ प्रकार के द्रव्यों उस निर्जराह्वयं = निर्जरा नामक,
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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