SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 566
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकोनविशतिः ५४५ ने, मुनिसुव्रतगिर्वाणवृत्तं - तीर्थङ्कर मुनिसुव्रतनाथ के निवांण का चरित्र. ऊचतुः = कहा। श्लोकार्थ - अत्यधिक कान्ति से चमकते रत्नाभूषणों से सुशोभित. रत्नखचित विमान के आगे भाग पर आरूढ़ और अयोध्या आये हुये उन दोनों विद्याधरों ने महाराज रामचन्द्र को नमस्कार किया तथा तभी हर्ष से भरे हुये इन दोनों विद्याधरों ने तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ के मोक्ष गमन स्वरूप समाचार को सुनाया। श्रुत्वा श्रीरामचन्द्रस्तु प्रमुद्यानन्दभेरिकाम् । प्रवादयित्वा सहितोऽसौ परिवारेण भव्यराट् । ६५ ।। मुनिसुव्रतपूजार्थं चचालोत्साहसंयुतः । अष्टादशाक्षौहिणीकदलेन सहितो विभुः ।।६६ ।। पीताम्बरवनं गत्वा शुभस्थानं मुदान्वितः। देवं समवसारेऽथ मुनिसुव्रतं चार्चयत् ।।६७ ।। अन्वयार्थ - श्रुत्वा = सुनकर, प्रमुय = प्रसन्न होकर, (च = और). आनन्दभेरिकाम् = आनन्द भेरी को, प्रवादयित्वा = बजवाकर, परिवारेण = परिवार के, सहितः = साथ, असौ .. उस, भव्यराट् = भव्य राजा, श्रीरामचन्द्रः = श्री रामचन्द्र, उत्साहसंयुतः - उत्साह युक्त होता हुआ. मुनिसुव्रतपूजार्थ = मुनिसुव्रतनाथ की पूजा करने के लिये, चचाल = चला, अथ = तत्पश्चात्, अष्टादशाक्षौहिणीकदलैन = अठारह अक्षौहिणी सैन्य बल के, सहितः = साथ, मुदान्वितः = प्रसन्नता से सहित. विभुः = राजा ने, शुभस्थानं = शुभ स्थान स्वरूप, पीताम्बरवनं = पीताम्बर वन को, गत्वा = जाकर. च = और. समवसारे - समवसरण में, देवं = भगवान्. मुनिसुव्रतं = मुनिसुव्रतनाथ को, आर्चयत् = पूजा। श्लोकार्थ - चारण ऋद्धिधारी मुनिराजों द्वारा प्राप्त तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ के निर्वाण समाचार को सुनकर वह भव्य राजा श्री रामचन्द्र
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy