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________________ एकोविंशतिः तत्पश्चान्नवकोट्युक्त्तचतुर्लक्षपरिमिताश्च । त्रिंशत्सहस्रमुनयः निर्जरात् निर्जरां गताः ।।५८ ।। अन्वयार्थ · तत्पश्चात् = तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ के बाद. निर्जरात् = उस निर्जरकूट से, नवकारपुस्तचतुर्लक्षपरिमिता: = नौ करोड़ चार लाख प्रमाण, च = ओर, त्रिंशत्सहसमुनयः = तीस हजार मुनिराज, निर्जरां = निर्जरा अर्थात सिवदशा को, गताः - चले गये। श्लोकार्थ . तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ के बाद उसी निर्जरकूट से नौ करोड़ चार लाख तीस हजार मुनिराज सिद्धदशा को प्राप्त हुये। अयोध्यानगरी यत्र सर्वलोकनमस्कृता । रामचन्द्रोऽभवदाजा तरयां शीलनिधिर्महान् ।।५।। अन्वयार्थ - यत्र = जहाँ, सर्वलोकनमस्कृता = सर्व लोक से नमस्कृत, अयोध्यानगरी:- अयोध्यानगरी. (आसीत् = थी), तस्यां = उस गगरी में, शीलनिधिः = चरित्रवान्, महान् - महान्, राजा = राजा, रामचन्द्रः - रामचन्द्र, अभवत् -- हुयं । श्लोकार्थ - जम्बूद्वीप में सभी लोगों द्वारा नमस्कार किये जाने योग्य अयोध्या नगरी थी। उस नगरी में एक चरित्रवान् महान राजा रामचन्द्र हये थे। सीतादेवीति विख्याता महिषी तस्य चाभवत्। तया सहैव स धर्मात्मा बुभुजेन्द्रोपमं सुखम्।।६०।। अन्वयार्थ - तस्य :- उस राजा की, महिर्षी = रानी, सीतादेवी = सीता देवी, इति -- इस, (नाम्ना = नाम से), विख्याता = प्रसिद्ध. अभवत् = हुई थी. तया = उस रानी के. सहैव = साथ ही. सः = उस, धर्मात्मा = धर्मानुरागी राजा ने, इन्द्रोपम = इन्द्र के समान, सुखं = सुख को. बुभुजे - भोगा। श्लोकार्थ - उस राजा की रानी सीता देवी विख्यात थीं। उसके ही साथ उस धर्मात्मा राजा रामचन्द्र ने इन्द्र सुख के समान सुखों का उपभोग किया।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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