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________________ ५४२ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य करके, च = और, निर्जरकूटके = निर्जर कूट पर, प्रतिमायोगम् = प्रतिमायोग को, आस्थाय = ग्रहण करके, सः = वह प्रभु, सहस्रमुनिपैः = एक हजार मुनियों के, समं = साथ. वैशाखकृष्णदशमीजन्मभे - वैशाख कृष्णदशमी को जन्म अर्थात् श्रवण नक्षत्र में, परं- उत्कृष्ट, पदं = मोक्ष स्थान को, अपि = भी, अगात = चले गये। श्लोकार्थ - तालाब में डूबते हुये बैल को देखकर विरक्त बुद्धि वह राजा अपने पुत्र को राज्य देकर, तपश्चरण के लिये दृढ़ संकल्प व सुस्थिर वैराग्य से युक्त हो गये | देवताओं से सेवित अर्थात् पूजित तथा सारस्वत जाति के लौकान्तिक देवों द्वारा स्तुति किये जाते हुये वह तीर्थकर प्रभु रत्नप्रभा नामक पालकी पर चढकर कार्तिक शुक्ला पंचमी को श्रवण नक्षत्र में नील वन में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षित हो गये। वहीं पर उन मुनिश्रेष्ठ ने अन्तमुहूर्त के भीतर मनःपर्ययज्ञान प्राप्त कर लिया। फिर सम्यग्दृष्टियों में अग्रणी सिरमौर तालपुर के बुद्धिमान राजा ने उन त्रिलोक गुरू के लिये प्रेमपूर्वक आहार दिया। उसके बाद वन को प्राप्त करके उन मुनिराज ने उग्र तपश्चरण करते हुये घातिया कर्मों को जलाकर केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। इन्द्र की आज्ञा से कुबेर भी शीघ्रता से समवसरण की रचना करके प्रसन्न हुआ। बारह कोठों से युक्त उस समवसरण में भव्य जीवों के समूहों से पूजित प्रभु मुनिसुव्रतनाथ सिंहासन से चार अंगुल ऊपर विराजमान थे। गणधरों द्वारा पूछे गये उन्होंने दिव्यध्वनि खिराकर उपदेश दिया तथा अनेक देशों में विहार करके, प्रसन्नता के कारण से धर्मवृष्टि को फैलाते हुये जब एक माह मात्र आयु शेष रही तो वह सम्मेदशिखर पर्वत पर चले गये। दिव्यध्वनि को बंद करके और निर्जरकूट पर प्रतिमायोग लेकर एक हजार मुनियों के साथ वह प्रभु वैशाखकृष्णदशमी को जन्म अर्थात् श्रवणनक्षत्र में उत्कृष्ट पद अर्थात मोक्ष को चले गये।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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