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________________ ५३. श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य देवकुमारकैः = देव कुमारों द्वारा, स्तुतः = स्तुति किये जाते हुये, बालक्रीडारतः = बालक्रीड़ाओं में रत, सः = उन. देवः == तीर्थङ्कर प्रभु ने बाललीला = बानोशित लीला को, (कृत्वा = करके), सार्धं सप्तसहस्रायुः = साढ़े सात हजार वर्ष आयु को, ध्यपोय = बिताकर, पैतृकं = पैतृक, पदं = स्थान अर्थात् राज्य सिंहासन पर राजा के पद को. आसाद्य = प्राप्त करके, प्रजाना = प्रजाजनों के लिये, सौख्यं = सुखी, अकरोत् = किया। श्लोकार्थ - उस रानी ने जिन स्वप्नों को देखा वे इस प्रकार हैं – (१) उन्मत्त हाथी (२) बैल, (३) सिंह (४) लक्ष्मी (५) दो पुष्प मालायें, (६) सूर्य, (७) चन्द्रमा (E) दो स्वर्ण कलश (६) मत्स्य युगल (१०) सरोवर (११) समुद्र (१२) सिंहासन (१३) विमान (१४) नागभवन (१५) रत्नराशि और (१६) निर्धूम प्रज्वलित अग्नि। उपर्युक्त सोलह स्वप्न देखकर रानी ने अपने मुख में प्रविष्ट होते हुये एक मदोन्मत्त हाथी को देखा। उसके बाद जागी हुई रानी ने पति के मुख से स्वप्नों का सारा फल सुनकर उसी समय परम आनंद को प्राप्त किया। तदनन्तर आयु के अन्त में वह अहमिन्द्र देव अर्थात तीर्थङ्कर का जीव स्वयं ही स्वर्ग से च्युत होता हुआ शुभ लक्षणों से सम्पन्न उस रानी शोभा के गर्भ में आकर बस गया तथा वैशाख कृष्णा दशमी को श्रवण नक्षत्र में जगत् के स्वामी शुभ लक्षण सम्पन्न शोभा रानी की कोख में से वैसे ही उत्पन्न हो गये जैसे नयों के प्रयोग से स्याद्वाद धर्म सिद्ध हो जाता प्रभु का जन्म होते ही देवों और देवताओं युक्त सुरोत्तम सौधर्म इन्द्र वहाँ आ गया और प्रभु को लेकर शीघता से सुमेरू पर्वत पर गया वहाँ उसने प्रभु का क्षीरसागर के जल से भरे और स्नेहसिक्त कलशों से अभिषेक किया। फिर उस सुरेन्द्र ने सुगन्धित जल से दुवारा अभिषेक करके तथा उन प्रभु को दिव्य आभूषणों से विमूषित किया और वहाँ से फिर राजगृह
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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