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________________ एकोनविंशतिः ५३७ सागर के जल से, पूर्णः = परिपूर्ण, प्रेमभरैः (घटैः = कलशों से ) तस्य को, अकरोत् = किया । वहीं उस पर्वत पर (सः = उसने), क्षीरोद्वारिभिः = क्षीरपरिपूर्ण, प्रेमभरैः = स्नेहसिक्त, उन प्रभु के अभिषेकं = अभिषेक = = असौ उस, सुरेश्वर से, देवं = उन प्रभु का, पुनः करके, इमं = इन, प्रभुं = आभरणों से, अभूषयत् इन्द्र ने, गन्धवाभिः सुगन्धित जल फिर से, अभिषिच्य = अभिषेक दिव्य, आभरणैः = प्रभु को दिव्यैः = · = Z = विभूषित किया. पश्चात् = बाद में, ततः = वहाँ से, पुनः = फिर से, जगत्पतिं = जगत् के स्वामी को, राजगृहं राजगृह, समानीय = लाकर, नृपाङ्गणे राजा के आँगन में समारोप्य आरोपित करके, (च और), भक्त्या = भक्ति से सम्पूज्य पूजकर, तदग्रे = उनके सामने, ताण्डवं = ताण्डव नृत्य को संविधाय करके, अथ = इसके बाद, सः = उस, वासः = इन्द्र ने मुनीनां मुनियों के. सुव्रतत्वतः सम्यक् व्रतत्व के कारण, एनं = इस, मुनिसुव्रतनामानं मुनिसुव्रत नाम को, चक्रे = कर दिया। = · = = = - = अथ - इस प्रकार, जन्मोत्सवं - जन्म के उत्सव को, विधाय = करके, सौधर्मनायके सौधर्म इन्द्र के, गते चले जाने पर, दम्पती = राजा-रानी दम्पति ने तं = उन प्रभु को, दृष्ट्वा देखकर, तत्र वहीं, तं उस, उत्तमं - उत्तम, सुखं प्राप = प्राप्त किया । = = S = सुख को, = ततः = उन तीर्थङ्कर मल्लिनाथ से, चतुरूत्तरपञ्चाशल्लक्षवर्षोपरि चौवन लाख वर्ष ऊपर होने अर्थात् बीत जाने पर, तन्मध्यजीवनः उस काल में अन्तर्भूत है जीवन जिनका ऐसे, विश्वनाथः = जगत् के नाथ, मुनिसुव्रतः तीथङ्कर मुनिसुव्रतनाथ, अमूत् = हुये । त्रिंशत्सहस्र वर्षायुः = तीस हजार वर्ष आयु वाले ( च = और). विंशत्युक्तधनुस्तनुः = बीस धनुष प्रमाण शरीर वाले, वर्णेन = रंग से, हरितः = हरे, शोभासिन्धुः - सुन्दरता के सागर, महोदय: = महान् पुण्योदय वाले, बाल्ये = बाल्यावस्था में, =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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