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एकोनविंशतिः
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धारण करने वाला, हरिवंश समुद्भूतः = हरिवंश में उत्पन्न, सुमित्र: सुमित्र नाम नामक राजा राजा. आसीत् = था, च = और, सुरराजार्चितस्य = इन्द्र द्वारा पूजित तस्य = उस राजा की, शक्रवामानिषेविता = इन्द्र की पत्नी से सेवित, सोमाख्या = सोमा नामक, महिषी = रानी, (आसीत् थी), तत्समान्या = उसके समान अन्य, वरा = सुन्दरी, भासिनी कान्तिमयी, क्यापि कहीं पर भी, त्रिलोक्यां = तीनों लोकों में, न = नहीं, हि = ही, (आसीत् = थी), तया उस रानी के मह सः उस बसुधाधिपः = राजा ने. अतुलं अनुपम, सौख्यं = सुख को लेभे = प्राप्त किया । श्लोकार्थ सुप्रसिद्ध जम्बूद्वीप के इस भरत क्षेत्र में मगधदेश है। उसमें
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नौ योजन चौड़ा और बारह योजन लम्बा रत्नजनित ज्योतियों से प्रकाशित स्वर्णखनी राजगृह नामक एक नगर है। उस नगर में इन्द्र आदि द्वारा रचित त्रैलोक्य का प्रतीक कमल सदृश स्थान था । उस नगर में धर्मधुरा को धारण करने वाला हरिवंश में उत्पन्न सुमित्र नामक राजा की सोमा नाम की एक रानी थी जो इन्द्र पत्नी द्वारा सेवा की जाती थी उसके समान सुन्दर और कान्तिमती अन्य कोई भी स्त्री तीनों लोक में कहीं पर भी नहीं थी। उस रानी के साथ उस राजा ने अनुपम सुख को प्राप्त किया ।
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अर्वाक् षण्मासतस्तत्र शक्राज्ञप्तेन सादरम् । धनदेन कृता वृष्टिः रत्नानां द्युतिसद्मनाम् ।।२८।।
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अन्वयार्थ तत्र = उन राजा-रानी के घर में, षण्मासतः = छह माह से, अर्वाक् = पहिले, शक्राज्ञप्तेन इन्द्र की आज्ञा को प्राप्त, धनदेन = कुबेर के द्वारा द्युतिसद्मनां = दीप्ति या कान्ति के भण्डार स्वरूप अर्थात् अत्यधिक कान्तिपूर्ण, रत्नानां = रत्नों की वृष्टिः = वर्षा, कृता - की।
श्लोकार्थ उन राजा रानी के घर में छह माह पहिले से इन्द्र की आज्ञा को प्राप्त धनद अर्थात् कुबेर के द्वारा दीप्ति के भंडार स्वरूप अर्थात् अत्यधिक कान्तिपूर्ण रत्नों की वर्षा की ।