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________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ - इत्थं = ऐसा, अयं = यह, समवसारः = समवसरण, यथा = जैसा. (वर्णितः = वर्णित है, तथा = वैसा, मया = मुझ कवि द्वारा), समासात् = संक्षेप से, अनुवर्णितः = शास्त्रानुसार वर्णन किया गया, बुधैः = विद्वज्जनों द्वारा, तद्विस्तारः = उसका विस्तृत वर्णन, महापुराणे = महापुराण में, द्रष्टव्यः = देखना चाहिये। श्लोकार्थ - कवि कहता है कि इस प्रकार यह जैसा है वैसा समवसरण का शास्त्रानुसार वर्णन संक्षेप से मुझ द्वारा किया गया। उसका विस्तृत वर्णन महापुराण में विद्वज्जनों द्वारा देखा जाना चाहिये। प्रभोरिच्छानुसारेण महावीरस्य धीमतः । स स्वयं यत्र सम्प्राप्तो विपुलाचलपर्वते ।।१०५।। अन्वयार्थ - यत्र = जिस, विपुलाचलपर्वते = विपुलाचल पर्वत पर. धीमतः = केवलज्ञान के स्वामी धीमान, प्रभोः = प्रभु, महावीरस्य = महावीर का, स = वह समवसरण, स्वयं = स्वयमेव, इच्छानुसारेण = भव्य जीवों की इच्छा अर्थात् भाग्य के अनुसार, सम्प्राप्तः = प्राप्त हुआ। श्लोकार्थ - भव्य जीवों की इच्छा अर्थात् भाग्य के अनुसार केवलज्ञानी भगवान महावीर का समवसरण स्वयं विपुलाचल पर्वत पर आ गया अर्थात् प्राप्त हुआ। यत्र प्रभुमहावीरः स्वयं भव्यजनान्प्रति । धर्मोपदेशव्याख्यानं करोति करूणामयः ।।१०६।। अन्वयार्थ - यत्र = विपुलाचल पर्वत पर आगत जिस समवसरण में, करूणामयः = करूणा स्वरूप, प्रभु = भगवान, महावीरः = महावीर, स्वयं = स्वयमेव, भव्यजनान् प्रति = भव्य जीवों को, धर्मोपदेशव्याख्यानं = धर्मोपदेश रूप व्याख्यान, करोति = करता है।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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