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________________ प्रथमा = = प्राणी, (भवन्ति = होते हैं), ते वे, अत्र यहाँ, शान्तमहीतले शान्ति से परिपूर्ण भूमि स्वरूप समवसरण में, अन्योन्यं परस्पर, निरीक्षिताः = देखते हुये, बैरभावविनिर्मुक्ताः वैरभाव से पूरी तरह मुक्त अर्थात् वैरभाव छोडकर मित्र (भवन्ति = हो जाते हैं)। = ▾ श्लोकार्थ - जो जहाँ भी स्वभावतः अर्थात् जन्मजात बैरी होते हैं वे शांति के स्थल स्वरूप समवसरण में एक दूसरे को अच्छी तरह जानते देखते हुये वैरभाव छोड़कर मित्र हो जाते हैं। गजेन्द्रेण शार्दूलोऽपि गवा सह । मृगेन्द्रश्च विडालो मूषकेनाथ मयूरो भुजगेन च ।। १०२ ।। अन्येऽपि सर्वे निर्वेदा: परस्परविरोधिनः । विहरन्ति श्रीजिनेन्द्रप्रभावतः ||१०३ ।। अन्वयार्थ यत्र = सदा यन्त्र = . जिस समवसरण में, श्रीजिनेन्द्रप्रभावतः श्री जिनेन्द्र भगवान् के प्रभाव से भृगेन्द्रः = शेर गजेन्द्रेण सह हाथी के साथ, शार्दूलः - बाघ, गवा सह गाय के साथ विडाल = बिलाव, भूषकेन सह = चूहे के साथ, मयूरः अपि = मयूर भी, भुजंगेन सह = सर्प के साथ, अथ च = और, अन्ये अन्य सर्वे सभी, अपि = भी, परस्परविरोधिनः = परस्पर बैर विरोध रखने वाले, (प्राणिनः = प्राणी), निर्वैराः = बैर रहित, ( सन्तः = होते हुये), सदा - हमेशा विहरन्ति = विहार- विचरण करते हैं। ३६ PP इत्थं महापुराणे · = समासादनुवर्णितः । द्रष्टव्यस्तद्विस्तारो बुधैर्यथा ॥ १०४ ॥ । श्लोकार्थ - समवसरण में श्री जिनेन्द्र भगवान् के प्रभाव से मृगेन्द्र अर्थात् - सिंह हाथी के साथ, बाघ गाय या बैल के साथ, बिलाव चूहे के साथ, मोर सर्प के साथ और अन्य सभी परस्पर बैर विरोध रखने वाले प्राणी हमेशा बैर रहित होकर विचरण करते हैं। समयसारोऽयं =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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