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________________ अष्टदशः ___५१५ अन्वयार्थ . च = और. तदा - तब, सहस्रप्रमिताः :: एक हजार प्रमाण, मुमुक्षय = मुमुक्ष. भात्या -- मत्य क्षितिपाः = राजाओं ने, तदनु = उनके पीछे, महोत्साहात् : अत्यधिक उत्साह से, जैनदीक्षिकां = जैन दीक्षा को. जग्रहुः = ग्रहण कर लिया। श्लोकार्थ . तभी एक हजार मुमुक्षु भव्य राजाओं ने अत्यधिक उत्साह से प्रभु के तत्काल बाद ही जैनेश्वरी दीक्षा को ग्रहण कर लिया। चतुर्थबोधसम्पन्नः तदैव परमं प्रभुः। द्वितीयदिवसे शुद्धभिक्षार्थं मिथिलां गतः ।।४४।। अन्वयार्थ - तदैव = तभी. चतुर्थबोधसम्पन्नः = चौथे ज्ञान से सम्पन्न, परमं ः परम, प्रगुः = प्रभु, द्वितीयदिवसे = दूसरे दिन, शुद्धभिक्षार्थ -- शुद्ध भिक्षा अर्थात् आहार के लिये, मिथिला = मिथिला नगरी को, गतः = गये। श्लोकार्थ- तभी अर्थात् दीक्षा लेते ही चौथे मनःपर्ययज्ञान से सम्पन्न परम प्रभु दूसरे दिन शुद्ध आहार के लिये मिथिला नगर को गये। धन्य धन्य स्तुतिस्तत्र समन्तान्नगरे भवत्। सादरं नन्दिषेणस्तं सम्पूज्याहारमुत्तमम् ।।४५।। तस्मै भगवते दत्त्वाऽपश्यदाश्चर्यपञ्चकम् । कृतकृत्यमिवात्मानं बने मुनिश्चागमत् ।।४६ ।। अन्वयार्थ - तत्र = उस, नगरे = नगर में, समन्तात् -- चारों तरफ से. धन्य = धन्य प्रभो! धन्य = धन्य प्रभो !, (इति = इस प्रकार). स्तुतिः = स्तुति, अभवत् = हुई, गन्दिषेणः = राजा नन्दिषेण ने, तं = उनको, सम्पूज्य = पूजकर, च = और, तस्मै = उन, भगवते = मुनिराज के लिये, उत्तम = उत्तम, आहारम् = भोजन को, दत्त्वा = देकर, आत्मानं = अपने आपको, कृतकृत्यम् इव = कृतकृत्य की तरह, आश्चर्यपञ्चकम् = पाँच आश्चर्यों को, अपश्यत् = देखा. मुनिः = मुनिराज, वने = वने में, अगमत् = चले गये। श्लोकार्थ - हे प्रभु धन्य हो, हे प्रभु! आप धन्य हो, इस प्रकार उस नगर में चारों तरफ से स्तुति हुई राजा नन्दिषेण ने उनको पूजकर
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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