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________________ ५१४ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य ब्रह्मर्षयस्तदा प्राप्ताः भक्त्या ते तं प्रतुष्टुवः । देवा अपि सुरेन्द्राधाः प्रणेमुस्तं समागताः ||४०।। अन्वयार्थ - तदा = तभी. ब्रह्मर्षयः - ब्रह्मर्षि जाति के लौकान्तिक देव, प्राप्ताः = उपस्थित हुये, ते = उन्होंने, भक्त्या = भक्ति से, तं = उनकी, प्रतुष्टुवः = स्तुति की. सुरेन्द्राधाः = सुरेन्द्र आदि, देवाः = देव, समागताः आ गये, (ते = उन्होंने). अपि = भी, तं = उनको, प्रणेमुः = प्रणाम किया। श्लोकार्थ . तभी ब्रह्मर्षि जाति के लौकान्तिक देव वहाँ उपस्थित हो गये और उन्होंनें भक्ति से प्रगु की स्तुति की तथा सुरेन्द्र आदि देव गी आ गये उन्होंने भी प्र को प्रणाम किया। जयन्ताय ततो राज्यं दत्त्वाऽसौ जगतां पतिः । सुधारकाल वालिग बनेकानने ।।४१।। वैजयन्त्यभिधां शिविकां समारूह्य परमाद्भुताम् । मार्गशुक्लैकादश्यां ये गत्वा दीक्षितोऽभवत् ।।४२।। अन्वयार्थ - ततः = उसके बाद, जयन्ताय = पुत्र जयन्त के लिये, राज्यं = राज्य को. दत्त्वा = देकर, असौ = वह, जगतां - तीनों लोकों के, पतिः = स्वामी. कुमारकाले = कुमारकाल में, एव - ही, अतिहर्षेण = अत्यधिक हर्ष से, परमादभुतां = परम आश्चर्यकारी. बैजयन्त्यभिधां = वैजयन्ती नामक, शिविका = पालकी पर, समालय - चढ़कर, श्वेतकानने = श्वेतकानन में, गत्वा = जाकर, वै = सन्देहरहित होकर, मार्गशुक्लैकादश्यां = मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन, दीक्षितः = दीक्षित, अभवत् = हो गये। श्लोकार्थ - उसके बाद जयन्त को राज्य देकर वह जगत् के स्वामी प्रभु कुमारकाल में ही अत्यंत हर्ष से परम आश्चर्यकारी वैजयन्ती नामक पालकी पर चढ़कर श्वेतकानन में जाकर मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष में एकादशी को दीक्षित हो गये। तदनु क्षितिपा वै भव्याः सहस्रप्रमितास्तदा। मुमुक्षवो महोत्साहाच्च जग्रहुज॑नदीक्षिकाम् ||४३।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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