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________________ अष्टदशः ५०६ श्लोकार्थ- तथा उन राजा-रानी के घर में प्रण के जन्म को जानकर धनद अर्थात कुबेर आदि देवताओं ने अनेकजाति के रत्नों को बरसाया। अथ चैत्रे शुभे मासे शुक्लायां प्रतिपत्तिथौ । सुप्ता प्रभावती प्रातः स्वप्नानैक्षत षोडशान् ।।२५।। अन्वयार्थ - अश्न = इसके बाद, शुभे = शुभ, चैत्रे = चैत्र, मासे = मास में, शुक्लायां = शुक्ला, प्रतिपत्तिथौ = प्रतिपदा तिथि को. सुप्ता = सोयी हुयी, प्रभावती = प्रभावती रानी ने, प्रातः = प्रातःवेला में, षोडशान - सोलह, स्वानान् = स्वप्नों को, ऐक्षत - देखा। श्लोकार्थ - तत्पश्चात् चैत्र शुक्ला प्रतिपदा के शुभ दिन सोयी हुई रानी प्रभावती ने प्रातः काल में सोलह स्वप्नों को देखा। मुखे मदादुन्मत्तंभ प्रविशन्तं निरीक्ष्य सा । प्रबुद्धा भूपनिकटं वै गता स्वप्नफलानि च ।।२६।। तन्मुखादवधार्यार्थ मुमुदे पङ्कजेक्षणा | तद्गर्भगोऽहमिन्द्रोऽभूदिन्द्रादिसुखयन्दितः ।।२७।। अन्वयार्थ - मुखे = मुख में, प्रविशन्तं = प्रवेश करते हुये, मदात् = मद से, उन्मत्तेभ - उन्मत्त हाथी को, निरीक्ष्य = देखकर, प्रबुद्धा = जागी हुयीं, सा = वह रानी, वै = निःसन्देह रूप से. भूपनिकट = राजा के पास में, गता = गयी, च = और. स्वप्नफलानि = स्वप्न के फल को, तन्मुखात् = राजा के मुख से, (श्रुत्वा = सुनकर), अर्थ = अर्थ को. अवधार्य = धारण करके, (सा = वह), पङ्कजेक्षणा = कमलनयनी रानी, मुमुदे = प्रसन्न हुई, इन्द्रादिसुरवन्दितः = इन्द्र है प्रमुख जिनका ऐसे देवताओं से वन्दित, अहमिन्द्रः = अहमिन्द्र. तद्गर्भगः = उसके गर्भ में रहने वाला, अभूत् = हुआ । श्लोकार्थ · मद से उन्मत्त हाथी को अपने मुख में प्रवेश करते देखकर जागी हुयी वही रानी निस्सन्देहतया राजा के पास गयी ! राजा के मुख से स्वप्न के फल को सुनकर और उसके अर्थ को
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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