SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 522
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टदशः श्लोकार्थ - राज्य में इन्द्र के समान सुशोभित होता हुआ. अनेकगुणों का स्वामी, अतिशय शीलवान् प्रतापी और प्रभु के नाम का जप करने में आसक्त वह राजा एक दिन वनक्रीडा के लिये वन में गया वहाँ उसने एक अत्यधिक विशाल वट वृक्ष को देखा । महाघनहिमच्छायायक्षवृन्दनिवेशितः । श्लोकार्थ ५०३ स्वामी, शीलसिंधुः अतिशय चारित्रवान् प्रतापवान् = प्रतापी, च = और, प्रभुनामजपासक्तः = प्रभु के नाम का जप करने में आसक्त, सः = वह राजा, एकदा = एक दिन. वनक्रीडानिमित्तं = वनक्रीडा के लिये, वनं = वन में, अध्यगात गया, नूनं = निश्चित ही, महान्तं = विशाल, एकवटतरू एक वट वृक्ष को ददर्श = देखा । भात्साधुः ॥ अन्वयार्थ - असौ = वह वृक्ष, उन्नतः = ऊँचा, महाधनहिमच्छाया यक्षवृन्दनिवेशितः = अत्यंत सघन एवं शीतल छाया वाले तथा यक्षों के समूहों से निवेशित अर्थात् उनके निवास स्वरूप, वनमध्ये = बन के बीच में, महासाधुः इव महान् साधु के समान, भाति रम सुशोभित हुआ । - - - वह वट वृक्ष बहुत ऊँचा अत्यंत सघन एवं शीतल छाया वाले तथा यक्षों के समूह से युक्त वन के बीच में महान् साधु के समान सुशोभित हुआ । तं दृष्ट्वा वटवृक्षं स प्रशंस्य बहुधाग्रतः । चचाल सबलो यावत् प्रसन्नवदनाम्बुजः ।।६।। तावत्तस्योपर्यकस्मात् बज्रपातो बभूव हि । भस्मतां तेन सम्प्राप्तो वटोऽयं पक्षिसंयुतः ||१०|| अन्वयार्थ तं - उस, वटवृक्षं = वटवृक्ष को. दृष्ट्वा = देखकर, अग्रतः - उसके आगे. बहुधा = अनेक प्रकार से, प्रशंस्य = प्रशंसा करके, सबल: = सेनासहित, प्रसन्नवदनाम्बुजः = कमल के समान प्रसन्न मुख वाला. सः = वह वैश्रवण राजा, यावत् : ज्योंही, चचाल = चला गया, तावत् त्योंही, तस्य = उस - =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy