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________________ ५०४ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य वट वृक्ष के, उपरि = ऊपर, अकस्मात् = अचानक, हि = ही, बज्रपातः = बज अर्थात् बिजली का गिरना, बभूव = हुआ, तेन = उस बजपात से, पक्षिसंयुक्तः = पक्षियों से संयुक्त, अर्य = वह, बट: -- वट वृक्ष. भस्मतां = राख के ढेर को, सम्प्राप्तः = प्राप्त हो गया। श्लोकार्थ- इस वट वृक्ष को देखकर एवं उसके आगे अनेक प्रकार स उसकी प्रशंसा करके प्रसन्नमुख कमल वह राजा सेना सहित ज्यों ही वहाँ से चला गया त्योंही उस वृक्ष के ऊपर अचानक ही वजपात है, मा। जिस पक्षियों से हा दह बट मुदत भरमीभूत हो गया। कृत्वा तस्यातिशोकं स राजा करूणया हदि । तदैव प्राप्तवैराग्या राज्यं तत्याज तन्महत् ।।११।। अन्वयार्थ - सः = वह, राजा = राजा, करूणया = करूणा से, तस्य - उस वृक्ष के नाश का, अतिशोकं = अत्यधिक शोक, हृदि = मन में, कृत्वा = करके, तदैव := उस ही समय, प्राप्तवैराग्य: = वैराग्य को प्राप्त करने वाले उस राजा ने, तन्महत् = उस विशाल, राज्यं = राज्य को, तत्याज = त्याग दिया । श्लोकार्थ - वह राजा करूणा से उस वृक्ष के नाश का अत्यधिक शोक मन में करके उस ही समय वैराग्य को प्राप्त करने वाले उस राजा ने उस विशाल राज्य को त्याग दिया। स्वपुत्राय तदा राज्यं दत्त्या वनमुपागतः । नमिस्वामिनस्समीपे स बहुभूपसमन्वितः ।।१२।। समुत्सह्य स जग्राह दीक्षां कल्मषनाशिनीम् । सिद्धालयस्य सोपानां तां प्राप्यातीव हर्षितः ।।१३।। क्रमादेकादशाङ्गानि पूण्यपि चतुर्दश । धृत्वा सम्भावयामास कारणानि च षोडश ।।१४।। अन्वयार्थ - तदा :- तब. स्वपुत्राय = अपने बेटे के लिये, राज्यं = राज्य. दत्वा = देकर, सः = वह राजा, बहुभूपसमन्वितः = अनेक राजाओं से युक्त होकर, वनं = वन में उपागतः = पहुँच गया,
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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