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________________ ४८.19 सप्तदशः = तीस धनुष प्रमाण शरीर वाले, अतीय = अत्यधिक, सुन्दर = कामदेव जैसे सुन्दर, बभूव = हुये। श्लोकार्थ – यह प्रभु चौरासी हजार वर्ष की आयु वाले और तीस धनुष । प्रमाण शरीर वाले अत्यधिक सुन्दर थे। हेपक: शतकामानां तप्तजाम्बूनदद्युतिः । प्रत्यहं मोहयामास पितरौ बालकेलिभिः ।।३७।। अन्वयार्थ - तप्तजाम्बूनदद्युतिः = तपाये हुये स्वर्ण की कान्ति के समान, (च - और), शतकामानां = सैकड़ों कामदेवों के लिये, हेपक: = लज्जाकारक, (प्रभुः = उन प्रभु ने), बालकेलिभि: = बालक्रीडाओं से, प्रत्यहं = प्रतिदिन, पितरौ = माता-पिता को. मोदायामास = प्रसन्न किया । श्लोकार्थ – तपाये हुये सोने की कान्ति समान सुन्दर और सैकड़ों काम देवों को लज्जित करते हुये उन शिशु प्रभु ने अपनी बाल क्रीडाओं से माता-पिता को प्रसन्न किया। एकविंशतिसाहस्रवर्षाणि क्रीडनादिभिः । बाल्ये तस्य व्यतीतानि शारदीन्दुसमद्युत्तेः ।।३८।। अन्वयार्थ - तस्य = उन, शारदीन्दुसमधुतेः = शरद ऋतु के चन्द्रमा के समान है कान्ति जिनकी ऐसे प्रभु के. एकविंशतिसाहस्रवर्षाणि = इक्कीस हजार वर्ष, बाल्ये = बाल्यकाल में, क्रीडनादिभिः = क्रीडा आदि के द्वारा, व्यतीनानि = बीत गये। श्लोकार्थ – शरद ऋतु के चन्द्रमा के समान कान्ति वाले उन शिशु तीर्थङ्कर के इक्कीस हजार वर्ष बाल्यकाल में क्रीड़ा आदि से व्यतीत हो गये। पितृराज्यं ततो लब्धं चक्रवर्त्यभवत्प्रभुः । तत्रापि मोहजस्तस्य मदो नाभून्नृपश्रिया ||३६ ।। अन्वयार्थ - ततः = उसके बाद, प्रभुः = प्रभु ने, पितृराज्यं = पैतृक राज्य, लब्धं = प्राप्त किया, च = और, चक्रवर्ती = चक्रवर्ती सम्राट्, अभवत् = हुये, तत्रापि = चक्रवर्ती होने पर भी, तस्य = उनके.
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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