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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = स्मरण से, सर्वासिद्धिदं = सारी सिद्धियों को देने वाला, अरनामक = अरनाथ नाम, कृतवान् = किया, पश्चात् = इसके बाद, तं = उन शिशु तीर्थङ्कर को, मात्रे = माता के लिये. समर्प्य = देकर, सुदर्शनाभिमतेन = राजा सुदर्शन के. अभितेन - अनुमति प्राप्त कर लेने से, अथ = और, जय देवम् = प्रभु की जय हो, (इति = ऐसा), उच्चार्य = कहकर. अमरैः = देवताओं के साथ, सः = वह, स्वर्ग = स्वर्ग को, गतः =
चला गया। श्लोकार्थ – वह देवेन्द्र प्रसन्न होता हुआ पुनः हस्तिनागपुर आ गया वहाँ
राजा के आँगन में विनयपूर्वक पूजा किये जाते हुये प्रभु को स्थापित करके देखते हुये उन प्रभु के सामने उस इन्द्र ने ताण्डव नृत्य किया और उसका रमण से गार्वसिद्धिदायक नाम अरनाथ कर दिया। फिर प्रभु को माता के लिये सौंपकर और राजा सुदर्शन से अनुमति ले लेने के कारण प्रभु की जय हो ऐसा कहकर देवताओं के साथ स्वर्ग को चला गया। कुन्थुनाथाच्चतुर्भागपल्यकाले गते प्रभुः ।
अरस्तन्मध्यसञ्जीवी बभूव जगतां पतिः ।।३५।। अन्वयार्थ · कुन्थुनाथात् - तीर्थङ्कर कुन्थुनाथ से. चतुर्भागपल्यकाले =
चौथाई पल्यकाल. गते = बीत जाने पर. तन्मध्यसञ्जीवी = उस काल के अन्दर ही जिनका जीवन सम्मिलित है ऐसे, जगतां = जगत् जीवों के. पतिः = स्वामी, अरः = अरनाथ,
प्रभुः = भगवान, बभूव = हुये। श्लोकार्थ -- तीर्थङ्कर कुन्थुनाथ के बाद चौथाई पल्य काल बीत जाने
पर उस काल में ही जिनकी आयु अन्तर्भूत है ऐसे अरनाथ
प्रभु उत्पन्न हुये। चतुर्युक्ताशीतिश्चेति सहस्रायुः पुरीश्वरः ।
त्रिंशध्यापशरीरोऽयं बभूवातीय सुन्दरः 1|३६।। अन्वयार्थ – अयं = यह, पुरीश्वरः = प्रभु, चतुर्युक्ताशीतिः = चौरासी,
सहस्रायः = हजार आयु वाले. च = और, त्रिंशच्चापशरीरः