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________________ ३६ श्लोकार्थ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अर्थात् मुक्ति के रहस्य को बताने के लिये विराजते = विराजमान होते हैं । उन बारह कोठों से आगे अनेकविध रत्नों से बनाया गया श्रीमण्डप होता है जिसमें अत्यंत सुन्दर और तीन मेखलाओं वाली पीठ बीचों बीच होती है उस पीठ के ऊपर अंतरिक्ष में चार अङ्गुल ऊपर ही दयानिधान भगवान् महावीर सर्वोत्कृष्ट मुक्ति मार्ग को या सर्वश्रेष्ठ तत्व को बताने के लिये बिराजमान रहते हैं । तस्योपरि प्रभादीप्तं 7 छत्रत्रयमनुत्तमम् । चतुःषष्टिप्रमाणौघचामराणां प्रचालनम् ||६४ ।। अशोकादीनि भान्ति स्म प्रातिहार्याणि चाष्ट वै । दृश्यन्ते सप्तपर्यायास्त्रयोभूताश्च भाविनः || ६५ ।। त्रयस्तथा वर्तमान एकैकमनुक्रमात् । प्रभाधिक्येन दिवसो रात्रिर्न ज्ञायते क्वचित् ||६६ || अन्वयार्थ तस्य = प्रभु के उपरि = ऊपर अनुत्तमम् = अत्यधिक उत्तम. प्रभादीप्तं = कान्ति सहित उज्ज्वल, छत्रत्रयम् तीन छत्र. चतुःषष्टिप्रमाणौघचामराणां - चौसठ चंवरों का प्रचालनम् = चलाना ढारना, च = और, अशोकादीनि = अशोक वृक्ष आदि, अष्ट = आठ, प्रातिहार्याणि = प्रतिहार्य वै = निश्चित ही भान्ति स्म = सुशोभित होते थे, (तत्र अष्टप्रातिहार्यौ में जो भामण्डल है उसमें), त्रयः तीन, भूताः = भूतकालीन भव, त्रयः = तीन, भाविनः भविष्यकालीन भव, तथा च और वर्तमानः - एक वर्तमान भव. (इति इस प्रकार ), सप्तपर्यायाः = सात भवों की व्यञ्जन पर्यायें, एकैकम् एक-एक करके, अनुक्रमात् = क्रमशः दृश्यन्ते = दिखाई देती हैं, तत्र समवसरण में प्रभाधिक्थेन क्रांति रूप तेज अर्थात् भामण्डल की दीप्ति की अधिकता से क्वचित् कहीं भी, दिवसः = दिन, रात्रिः रात, जाता है। = - = = . न == नहीं, ज्ञायते = जाना - = =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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