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षष्ठदशः
अन्वयार्थ - जम्बूभति = जम्बूवृक्ष से युक्त, (द्वीपे = द्वीप में), भरतस्य
= भरत के, शुभे =: शुभ, क्षेत्रे :- क्षेत्रे में, वत्साख्यं = वत्स नामक, उपवर्तनम् = राज्य, (अस्ति = है), च = और, तत्र = उस राज्य में, महत् = विशाल, सम्बलं = सम्बल नामक,
नगरं = नगर, आभाति = सुशोभित होता है। __ श्लोकार्थ .- जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के शुभ आर्य खण्ड में वत्स नामक एक
राज्य उस राज्य में सम्बल नामक एक विशाल नगर सुशोभित
हो रहा है। महासेनोऽभवदाजा तत्वज्ञानसमन्वितः ।
सोमश्री तस्य महिषी नमो: सोमनरः सुतः ।!५६।। अन्वयार्थ – तत्र = उस नगर में, तत्त्वज्ञानसमन्वितः = तत्त्वज्ञान से युक्त,
महासेनः = महासेन नामक, राजा - राजा, अभवत् = था, तस्य = उस राजा की, महिषी = रानी, सोमश्री = सोमश्री, (आसीत् = थी), तयोः - उन दोनों का. सोमधरः = सोमधर
नामक, सुतः -- पुत्र, अभवत् = हुआ। श्लोकार्थ – उस नगर में तत्वज्ञान से भी पूर्ण महासेन नामक राजा राज्य
करता था उसकी रानी सोमनी थी। उन दोनों का सोमधर
नामक पुत्र हुआ। स तु पुण्यनिधिर्नित्यं याचकेभ्य उदारधीः ।
ददौ दानानि बहुशो याचितानि च याचितैः ।।५७ ।। अन्वयार्थ – सः = उस, पुण्यनिधिः = पुण्यात्मा. उदारधीः = उदारबुद्धि
वाले राजा ने. याचितैः = यांचों द्वारा. याचितानि = माँगे गये. बहुशः = बहुत प्रकार से, दानानि = दान की वस्तुयें. नित्यं = हमेशा, प्रतिदिन, याचकेम्यः = याचकों के लिए, ददौ
= दी। श्लोकार्थ- उस पुण्यात्मा और उदार बुद्धि सम्पन्न राजा ने याचकों के
लिए उनके द्वारा मौंगी गयीं बहुत प्रकार की वस्तुयें प्रतिदिन = हमेशा दान में दीं।