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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य उस ज्ञानधर कूट पर, जगत्पतौ = जगत् के स्वामी भगवान् के. मोक्षसिद्धिं = मोक्षपद को, गते - चले जाने पर, तत्पश्चात् = उनके बाद, षण्णवत्युक्तकोटीना कोटिकाः = छियान्चे कोडाकोडी, पण्णवत्युक्तकोट्यः - छियान्वे करोड, द्वात्रिंशन्मितलक्षकाः - बत्तीस लाख, षण्णवत्युक्तस हम्रयुक्ता = छियान्चे हजार से युक्त, सप्तशती सात सौ, तथा = और, द्विचत्वारिंशत् = बयालीस. इत्युक्तसंख्यया = इस प्रकार कही गयी संख्या से, गणिता: = गिने गये, च = और, स्मृताः - स्मरण किये गये, भव्याः = भव्य, तपोज्ज्वलाः = तप से उज्ज्वल अर्थात पवित्र मुनिराज, गिरेः = सम्मेदशिखर पर्वत की, तस्मात् = उस, कूटात् = कूट से, एव = ही, शिव
- मोक्ष को. गताः -- गये। श्लोकार्थ - चैत्र की अमावस्या को उस कूट पर से जगत्पति केवलज्ञानी
कुन्थनाथ के मोक्ष चले जाने पर उनके बाद छियान्वे कोडाकोड़ी, छियान्वे करोड़, बत्तीस लाख छियान्वे हजार सात सौ बयालीस संख्या प्रमाण भव्य मुनिराज सम्मेदपर्वत
की इसी ज्ञानधर कूट से मोक्ष को गये। अथ सोमधरो राजा गिरियात्रां चकार सः ।
तत्कथां भव्याः मदुक्तां श्रृणुताधुना ।।५४।। अन्दयार्थ – अथ - अनन्तर, सः = उस, सोमधरः = सोमधर नामक, राजा
= राजा ने, गिरियात्रा = पर्वत की यात्रा को, चकार - किया, भव्याः - हे भव्य जीवो!, मदुक्तां - मेरे द्वारा कही गयी, पावनी = पावन, तत्कथा - उस यात्रा की कथा को, अधुना
- अब, श्रुणुत = सुनो। श्लोकार्थ - इसके बाद उस राजा सोमधर ने सम्मेदशिखर पर्वत की यात्रा
की थी। उस यात्रा की पावन कथा जो मेरे द्वारा कही जा
रही है। हे भव्य जीयो! तुम सब उसे सुनो। जम्बूमति शुभे क्षेत्रे भरतस्योपवर्तनम् । वत्साख्यं तत्र चाभाति सम्बलं नगरं महत् ।।५५।।