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षष्ठदश
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समुच्चार्य = उच्चारण करके, सतां = सज्जनों के लिये. धर्मान = धर्म का, उपदिशन् - उपदेश देते हुये, सर्वक्षेत्रेषु = सारे क्षेत्र में, विहरन = विहार करते हये. निजायुषः = अपनी वर्तमान पर्याय की आयु का, मासावधि = एक माह काल, प्रमाणं = प्रमाण, बुधि = अपने ज्ञान में, सम्बुध्य = जानकर, मौनं - मौन, आस्थाय = लेकर. च = और, सम्मेदं = सम्मेदशिखर पर्वत को, प्राप्य = प्राप्त करके, ज्ञानधरामिधे
= ज्ञानधर नामक, कूटे = कूट पर, अतिष्ठत् = ठहर गये। श्लोकार्थ - वह केवलज्ञानी प्रभु दिव्यध्वनि खिराते हुये, सज्जनों को धर्म
का उपदेश देते हुये तथा सारे क्षेत्र में विहार करते हुये अपनी इस पर्याय की आयु का काल एक मास जानकर मौन लेकर और सम्मेदाचल पर्वत को प्राप्त करके ज्ञानधर नामक कूट
पर स्थित हो गये। पूर्णयोग समारूय शुक्लध्यानधरो विभुः ।
सहस्रमुनिभिः सांकं निःश्रेयसपदं गतः ||५०।। अन्थयार्थ – शुक्लध्यानधरः = शुक्लध्यान धारण करने वाले, ग्रभुः =
भगवान् ने, पूर्णयोग = पूर्णतः योग का. समारुह्य = आरोहण करके, सहस्रमुनिभिः = एक हजार मुनियों के, साकं = साथ,
निःश्रेयसपदं = सिद्धपद को. गतः = गये ! श्लोकार्थ -- शुक्लध्यान धारण करने वाले गगवान ने पूर्णतः योम का
आरोहण करके एक हजार मुनियों के साथ निर्वाणपद को
प्राप्त हो गये। चैत्रामायां गते तस्मिन् मोक्षसिद्धिं जगत्पत्तौ । तत्पश्चात् षण्णवत्युक्तकोटीना कोटिकाः स्मृताः ।।५।। षण्णवत्युक्तकोट्यश्च द्वात्रिंशन्मितलक्षकाः । षण्णवत्युक्तस हम्रयुक्त्तासप्तशती तथा ।।५२।। द्विचत्वारिंशदित्युक्त्तसङ्ख्यया गणिताः शिवम् ।
तस्मादेव गिरेः कूटात् गता भव्यास्तपोज्ज्वलाः ।।५३।। अन्वयार्थ – चैत्रामायां = चैत्र मास की अमावस्या के दिन, तस्मिन =