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________________ ४६६ श्री समोदशिखर माहात्म्य श्लोकार्थ – तपश्चरण परम कल्याणकारक है क्योंकि उससे ही केवलज्ञज्ञान की प्राप्ति होती है तथा केवलज्ञान से मोक्षपद मिलता है। ततः समवसारेऽसौ धनदादिविनिर्मिते । शक्रादिसंस्तुतो देवः शुशुभे कोटिसूर्यरूक् ।।४६ ।। अन्वयार्थ - ततः = तत्पश्चात् असौ = वह, कोटिसूर्यरूक = एक करोड़ सूर्य के तेजगुञ्ज, शक्रादिसंस्तुतः = इन्द्र आदि द्वारा स्तुति किये जाते हुये, देवः = केवलज्ञानी प्रभु, धनदादिविनिर्मिते - कुबेर आदि द्वारा बनार्य गरी, समवसारे = समवसरण में, शुशुभे = सुशोभित हुये। श्लोकार्थ -- तत्पश्चात् वह करोड सूर्य की प्रभा से सम्पन्न तथा इन्द्र आदि द्वारा स्तुत भगवान् कुन्युनाथ कुबेर आदि द्वारा रचित समवसरण में सुशोभित हुये। स्वयम्भूगणपालाद्यैः यथोक्तैरखिलैः स्तुतः । सम्पूजितो वन्दितश्च रराज परमेश्वरः ।।४७।। अन्वयार्थ – यथोक्तैः = जैसे कहे गये हैं, (तथा - वैसे). अखिलैः = सम्पूर्ण, स्वयम्भूगणपालाद्यैः = स्वयंभू गणधरादिकों द्वारा, स्तुतः = स्तुति किये जाते हुये, सम्पूजितः = पूजा किये जाते हुये, च = और. वन्दितः = प्रणाम किये जाते हुये, परमेश्वरः = भगवान्, रराज = सुशोभित हुये। श्लोकार्थ - जैसे कहे गये हैं तदनुसार सभी स्वयंभू नामक गणधरों और देवों, मनुष्यों आदि से स्तुत पूजित और अभिवन्दित भगवान् सुशोगित हुये। दिव्यध्वनि समुच्चार्य धर्मानुपदिशन्सताम् । सर्वक्षेत्रेषु विहरन् मासावधि निजायुषः ।।४।। प्रमाणं बुधि सम्बुध्य मौनमास्थाय च प्रभुः । सम्मेदं प्राप्य सोऽतिष्ठत् कूटे ज्ञानधराभिधे ।।४६ ।। अन्वयार्थ -- सः प्रभुः = वह केवली प्रमु, दिव्यध्वनि = दिव्यध्वनि का,
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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