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श्री समोदशिखर माहात्म्य श्लोकार्थ – तपश्चरण परम कल्याणकारक है क्योंकि उससे ही
केवलज्ञज्ञान की प्राप्ति होती है तथा केवलज्ञान से मोक्षपद
मिलता है। ततः समवसारेऽसौ धनदादिविनिर्मिते ।
शक्रादिसंस्तुतो देवः शुशुभे कोटिसूर्यरूक् ।।४६ ।। अन्वयार्थ - ततः = तत्पश्चात् असौ = वह, कोटिसूर्यरूक = एक करोड़
सूर्य के तेजगुञ्ज, शक्रादिसंस्तुतः = इन्द्र आदि द्वारा स्तुति किये जाते हुये, देवः = केवलज्ञानी प्रभु, धनदादिविनिर्मिते - कुबेर आदि द्वारा बनार्य गरी, समवसारे = समवसरण में,
शुशुभे = सुशोभित हुये। श्लोकार्थ -- तत्पश्चात् वह करोड सूर्य की प्रभा से सम्पन्न तथा इन्द्र आदि
द्वारा स्तुत भगवान् कुन्युनाथ कुबेर आदि द्वारा रचित
समवसरण में सुशोभित हुये। स्वयम्भूगणपालाद्यैः यथोक्तैरखिलैः स्तुतः ।
सम्पूजितो वन्दितश्च रराज परमेश्वरः ।।४७।। अन्वयार्थ – यथोक्तैः = जैसे कहे गये हैं, (तथा - वैसे). अखिलैः =
सम्पूर्ण, स्वयम्भूगणपालाद्यैः = स्वयंभू गणधरादिकों द्वारा, स्तुतः = स्तुति किये जाते हुये, सम्पूजितः = पूजा किये जाते हुये, च = और. वन्दितः = प्रणाम किये जाते हुये, परमेश्वरः
= भगवान्, रराज = सुशोभित हुये। श्लोकार्थ - जैसे कहे गये हैं तदनुसार सभी स्वयंभू नामक गणधरों और
देवों, मनुष्यों आदि से स्तुत पूजित और अभिवन्दित भगवान्
सुशोगित हुये। दिव्यध्वनि समुच्चार्य धर्मानुपदिशन्सताम् । सर्वक्षेत्रेषु विहरन् मासावधि निजायुषः ।।४।। प्रमाणं बुधि सम्बुध्य मौनमास्थाय च प्रभुः ।
सम्मेदं प्राप्य सोऽतिष्ठत् कूटे ज्ञानधराभिधे ।।४६ ।। अन्वयार्थ -- सः प्रभुः = वह केवली प्रमु, दिव्यध्वनि = दिव्यध्वनि का,