SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 482
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६४ तत्र वैशाखमासस्य शुक्लायां प्रतिपद्यासौ । सहस्रकैः भूमिपैः सार्धं जैनीं दीक्षां समगृहीत् । ।४० ।। अन्ययार्थ श्लोकार्थ अन्वयार्थ उस सहेतुक वन में वैशाख सुदी प्रतिपदा के दिन एक हजार राजाओं के साथ जैनेश्वरी दीक्षा को ग्रहण कर लिया । मन:पर्ययमापासौ तदैव ज्ञानमुत्तमम् । द्वितीये घस्रे भिक्षायै हस्तिनागपुरं गतः । । ४१ ।। तदैव = तब ही, असौ - उन मुनिराज ने उत्तमं = श्रेष्ठ, मनः पर्ययम् = मन:पर्यय, ज्ञानं ज्ञान को, आप = प्राप्त कर लिया, द्वितीये दूसरे, घस्रे = दिन, भिक्षायै आहार के = लिये, हस्तिनागपुरं हस्तिनागपुर को गतः गये। श्लोकार्थ तभी उन मुनिराज ने उत्तम मन:पर्ययज्ञान को प्राप्त कर लिया। दूसरे दिन भिक्षा के अर्थात् आहार के लिये हस्तिनागपुर को गये । = = न अन्वयार्थ - श्लोकार्थ - — श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = तत्र = उस सहेतुक वन में वैशाखमासस्य = वैशाख माह की शुक्लायां = शुक्ल पक्ष में प्रतिपदि एकम के दिन, सहस्रकैः == एक बजार, भूषिषैराज के सार्धं साथ, जैन = जैनेश्वरी दीक्षां दीक्षा को समग्रहीत् = ग्रहण = 1 किया । - = = धर्ममित्रो महीपालस्तत्र तस्मै महादरात् । ददौ शुचि तदाहारं पञ्चाश्चर्यानैक्षत | | ४२ ॥ । तत्र = उस हस्तिनागपुर में, धर्ममित्रः = धर्ममित्र नामक, महीपालः = राजा ने तस्मै = उन मुनिराज के लिये, महादरात् = महान् आदर से शुचि = पवित्र, शुद्ध, आहारं = आहार को, ददौ दिया. तत् = उस कारण से, पञ्च = पाँच, आश्चर्यान् = आश्चर्यो को एक्षत् = देखा । " = उस हस्तिनागपुर में धर्ममित्र नामक राजा ने उन मुनिराज के लिये महान् आदर से शुद्ध आहार दिया जिससे पाँच आश्चर्य को देखा 1
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy