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________________ षष्ठदशः श्लोकार्थ " ४६३ = जानकर, तत्क्षणात् .. उसी समय देहात् = शरीर से, स्तुति करने लगे । विरक्तः = विरक्त, अभूत् = हो गया, तदा = तभी. लौकान्तिकाः लौकान्तिक, देवाः देव, आगताः = आ गये, तं उनकी, प्रतुष्टुवः एक समय अपनी आत्मा के ध्यान में तत्पर अति बुद्धिमान् उन प्रभु कुन्थुनाथ ने यह विकार शरीर के कारण से ही है, यह बंध को प्राप्त हुआ आत्मा देह से भिन्न है... ऐसा विचार करके उसी समय वैराग्य प्राप्त कर लिया। तभी आये हुये लौकान्तिक देवों ने उनकी स्तुति की। अन्वयार्थ · मघवापि तदा प्राप्तो देवैः सह मुदान्वितः । जयदेव समुच्चार्य भक्त्या तं प्रणनाम च । । ३८ ।। अन्वयार्थ तदा उसी समय, देवैः देवताओं के सह = साथ, (तत्र वहाँ), प्राप्तः - प्राप्त हुये, मघवा जय देव! = प्रभु की विजय हो, (इति = कहकर, च = और, भक्त्या = भक्ति से, तं प्रणनाम = नमस्कार किया । = = भी, इन्द्र ने, अपि इस प्रकार ), समुच्चार्य उनको, - - - = = श्लोकार्थ और उसी समय देवताओं के साथ वहाँ उपस्थित हुये इन्द्र ने भी प्रभु की जय हो इस प्रकार कहकर और भक्ति से प्रभु को नमस्कार किया । = = विजयाख्यां तदारू सहेतुकवनं भूपैः तदा तभी, सः विज्ञयाख्यां आरुह्य = चढकर, सहस्रैः = एक हजार, भूपैः राजाओं के सहितः = साथ, सहेतुकवनं = सहेतुक वन को, ययौ r = चले गये। = = = शिविकां स जगत्पतिः । सहस्रैः सहितो ययौ | | ३६ || वह जगत्पतिः जगत् के प्रभु. विजय नामक शिविकां = पालकी पर, = = - श्लोकार्थ तब वह कुन्थुनाथ तीर्थङ्कर विजय नाम की पालकी पर चढकर एक हज़ार राजाओं के साथ सहेतुक वन को चले गये।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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