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________________ ४६० अन्वयार्थ पुलकाङ्कितसर्वाङ्गो विधायाद्भुतताण्डवम् । आचकर्ष मनस्तत्र सर्वेषामङ्गहारदः ||२६|| = = सह = 1 = कुन्थुनाथाभिधां तस्य सर्वेषां पापकुन्धनात् । कृत्वा मात्रे समर्प्यध हृष्टोऽगादमरावतीम् । । ३० ।। अर्थ = इसके बाद, देवताधिपः = इन्द्र ने, तं उन, देवं = प्रभु को स्वाङ्क अपनी गोद में, समारोप्य आरोपित करके अर्थात् बैठाकर मोदनिर्भरात् = प्रसन्नता से मरे होने से, देवैः देवताओं के. साथ, जयध्वानम् = जय ध्वनि को, उच्चरन् = उच्चारित करते हुये, हस्तिनागपुरे = हस्तिनागपुर में, भूपं = राजा को, सम्प्राप्य = प्राप्त करके, मनुजेशितुः = राजा के. हेमाङ्गणे सिंहासन युक्त आँगन में, तं = उन शिशु प्रभु को आरोप्य आरोपित करके, विधिवत् = विधिपूर्वक संपूज्य = पूजा करके, ततः = उससे, पुलकाङ्कित = रोमाञ्चित, सर्वाङ्गः शरीर, अङ्गहारदः = अङ्गहार देते हुये, अद्भुतताण्डवं आश्चर्यकारी ताण्डव नृत्य को, विधाय करके, तत्र = उस नृत्य में सर्वेषां सभी का, मनः = चित्त को, आचकर्ष = आकर्षित कर लिया, अथ फिर, सर्वेषां = सभी लोगों के पापकुन्धनात् = पापों का नाश करने से, तस्य = उन प्रभु का, कुन्थुनाथाभिघां कुन्थुनाथ नाम को, कृत्वा = करके, मात्रे माता के लिये, समर्प्य देकर, हृष्टः = हर्षित होता हुआ, अमरावतीम् अमरावती को, अगात् = चला गया | न् = r = श्लोकार्थ - इसके बाद इन्द्र ने उन प्रभु को अपनी गोद में बैठाकर व प्रसन्नता से भरे होने से जय ध्वनि बोलते हुये देवताओं के साथ हस्तिनागपुर आ गया और राजा के भवन को प्राप्त करके राजा के आंगन में सिंहासन पर प्रभु को बैठाकर विधिपूर्वक उनकी पूजा करके तथा पूजा से पुलकित रोमाञ्चित शरीर वाले इन्द्र ने अङ्गहारों का प्रयोग दर्शाते हुये आश्चर्यकारी ताण्डव नृत्य किया उसने उस नृत्य में सभी के मन को आकर्षित कर लिया। फिर सभी के पापों का नाश का कारण होने से उनका नाम कुन्थुनाथ करके और शिशु H श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = = = =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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