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________________ पष्ठदशः ४५६ सूर्य के समान आभा वाले, तं = उन, महेशानं = महाप्रभु तीर्थड़कर को. स्वयुक्त्या = अपनी युक्ति से, समादाय = लेकर, तत्क्षणात् = जल्दी से, सः = वह इन्द्र, स्वर्णभूधरं = सुमेरुपर्वत को, आपेदे = प्राप्त हुआ, च = और, तत्र = वहीं सुमेरू पर्वत पर, पाण्डुकायां = पाण्डुकशिला पर,क्षीरोदवारिभिः = क्षीरसागर के जल से, पूरितैः = भरे हुये, आयतैः = विस्तृत, कानकैः = स्वर्ण से बने, घटै; = कलशों के द्वारा, जगदीश्वरं = जगत् के स्वामी तीर्थकर किसुका, मनापय :- न कराया अर्थात् उनका अभिषेक किया। श्लोकार्थ – अद्भुत शरीराकृति वाले तथा सूर्य के समान कान्ति से पूर्ण उन महाप्रभु तीर्थकर को अपनी युक्ति प्राप्त करके वह इन्द्र जल्दी से सुमेरू पर्वत पर चला गया और वहाँ उसने पाण्डुकशिला तीर्थकर शिशु को विराजमान कर क्षीरसागर के जल से पूर्ण विशाल कलशों से उनका न्हवन किया अर्थात् अभिषेक किया। पुनर्गन्धोदकरनानं कारयित्वाऽथ भूषणैः । दिव्यैस्सम्भूष्य तं देवं स्तुत्वा भक्त्याभिवन्दितः ।।२६।। अन्वयार्थ – अथ = फिर, पुनः - दुबारा, गन्धोदकस्नानं = सुगन्धित जल से स्नान को, कारयित्वा = कराकर, दिव्यैः :- दिव्य. भूषणैः = आभूषणों से. तं = उन. देयं = प्रभु को, संभूष्य = अलङ्कृत करके, भक्त्या = भक्ति से, स्तुत्वा = स्तुति करके, अभिवन्दितः = प्रणाम किया। श्लोकार्थ - इसके बाद पुनः प्रभु का सुगन्धित जल से स्नान कराकर तथा दिव्य आभूषणों से उन्हें अलङ्कृत करके भक्ति से उनकी स्तुति करके इन्द्र आदि ने उन्हें प्रणाम किया। अथ स्वाङ्के समारोप्य तं देवं देवताधिपः । देवैस्सह जयध्यानमुच्चरन्मोदनिर्भरात् ।।२७।। हस्तिनागपुरे भूपं सम्प्राप्य मनुजेशितुः । हेमाङ्गणे तमारोप्य सम्पूज्य विधिवत्ततः ।।२८।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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