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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
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श्लोकार्थ - अहमिन्द्र देव का जीव रानी के गर्भ में आने पर सारी दिशायें प्रकाशमान हो गयीं आकाश निर्मल हो गया, और शीतल सुखकर, मन्द और सुगन्धित हवायें बहने लगीं । वैशाखमासे शुक्लायां गर्भभे प्रतिपत्तिथौ । देवः प्रादुरभूत्तस्यां तपस्तेजोनिधिः प्रभुः ।। २२ ।। अन्वयार्थ - वैशाखे मासे वैशाख माह में, शुक्लायां शुक्ल प्रतिपत्तिथौ प्रतिपदा तिथि में, गर्म गर्म में तपस्तेजोनिधिः = तपश्चरण करने के योग्य तेज से सम्पन्न. प्रभुः तीर्थङ्कर, देवः = वह देव, तस्यां = उस रानी के कोख में, प्रादुरभूत = उत्पन्न हुआ | वैशाख शुक्ला एकम के दिन गर्मनक्षत्र में तपश्चरण करने हेतु तेजपुञ्ज वह तीर्थङ्कर के रूप में समर्थ वह देव उस रानी से उत्पन्न हुआ ।
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श्लोकार्थ
सौधर्मेशस्तदैवान्तर्मुदितोऽवधितः प्रभोः । ज्ञात्वऽवतरणं तत्र प्राप्तस्सह सुरासुरैः । । २३ ||
अन्वयार्थ
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तदैव = उस ही समय अवधितः = अवधिज्ञान से प्रभोः तीर्थङ्कर का अवतरणं = जन्म, ज्ञात्वा = जानकर, अन्तर्मुदितः = मन में प्रसन्न हुआ, सौधर्मेशः = सौधर्म स्वर्ग का स्वामी इन्द्र, सुरासुरैः सुर और असुरों के सह साथ, तत्र = वहाँ, प्राप्तः = प्राप्त हुआ अर्थात् पहुंचा ।
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श्लोकार्थ तभी तीर्थङ्कर कुन्थुनाथ का जन्म अपने अवधिज्ञान से जानकर प्रसन्न मन, सौधर्म इन्द्र देवों और असुरों के साथ वहाँ आ गया |
स्वयुक्त्या तं महेशानं समादाय रविप्रभम् । अद्भुताकारमापेदे
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तत्क्षणात्स्वर्णभूधरम् ||२४||
च पूरितैरायतैर्घटैः |
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तत्र
क्षीरोदवारिभिः कानकैः पाण्डुकायां सोऽस्मापयज्जगदीश्वरम् ||२५|| अन्वयार्थ – अद्भुताकारं आश्चर्यकारी शरीराकृति वाले. रविप्रभुं
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