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षष्ठदशः
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श्लोकार्थ स्वप्न दर्शन के बाद जागी हुयी एवं विस्मय से पूर्ण उस रानी ने पति के समीप में उन स्वप्नों को कहा तथा उनको सुनकर वह राजा प्रसन्न हुआ ।
श्रुत्वा पतिमुखात्स्वप्नफलं भावि सुभामिनी । प्राप सुखं तारेश्वरानना । | १६ ||
वाचामगोचरं
अन्वयार्थ
श्लोकार्थ
अन्वयार्थ
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पतिमुखात् = पति के मुख से भावि भविष्य विषयक. स्वप्नफलं = स्वप्न के फल को श्रुत्वा = सुनकर, तारेश्वरानना = चन्द्रमुखी. सुभामिनी = सुन्दर रानी ने, वाचा = वाणी के अगोचरं विषयातीत, सुखं सुख को प्रापत
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= प्राप्त किया ।
अन्वयार्थ
तत्फलप्राप्तिसिद्धयर्थं त्रिविधेभ्यो धनं महत् । सुपात्रेभ्यः प्रतिदिनं ददावानन्दसंप्लुता ।। २० ।। उनका फल प्राप्त हो इसकी सिद्धि
आनंद से भरी उस रानी ने
तत्फलप्राप्तिसिद्धयर्थं के लिये आनंदसंप्लुता त्रिविधेभ्यः = तीन प्रकार के सुपात्रेभ्यः सत्पात्रों के लिये, प्रतिदिनं प्रत्येक दिन महत्= विपुल धनं धन को,
·
=
ददौ = दिया ।
पति के मुख से भावि स्वप्न फल को सुनकर उस चन्द्रमुखी सुन्दर रानी ने शब्दातीत सुख को प्राप्त किया ।
=
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श्लोकार्थ -- स्वप्नों के फल की प्राप्ति हो इसकी सिद्धि के लिये आनन्द से भरी उस रानी ने तीन प्रकार के सुपात्रों को प्रतिदिन विपुल धन दिया ।
तद्गर्भमागते देवे दिशः सर्वाश्चकाशिरे । गगनं निर्मलं चासीत् भरूतस्त्रिविधा ववुः ||२१||
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=
रानी के गर्भ में आगते आने
देवे = देव के, तद्गर्भ पर, सर्वाः - सारी, दिशः = दिशायें, चकाशिरे चमकने लगीं. गगनं = आकाश, निर्मलं निर्मल, आसीत् = हो गया. च = और, त्रिविधाः = तीन प्रकार की मरूतः = हवायें, ववुः
=
बहने लगीं।
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