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________________ षष्ठदशः ४५७ श्लोकार्थ स्वप्न दर्शन के बाद जागी हुयी एवं विस्मय से पूर्ण उस रानी ने पति के समीप में उन स्वप्नों को कहा तथा उनको सुनकर वह राजा प्रसन्न हुआ । श्रुत्वा पतिमुखात्स्वप्नफलं भावि सुभामिनी । प्राप सुखं तारेश्वरानना । | १६ || वाचामगोचरं अन्वयार्थ श्लोकार्थ अन्वयार्थ — - पतिमुखात् = पति के मुख से भावि भविष्य विषयक. स्वप्नफलं = स्वप्न के फल को श्रुत्वा = सुनकर, तारेश्वरानना = चन्द्रमुखी. सुभामिनी = सुन्दर रानी ने, वाचा = वाणी के अगोचरं विषयातीत, सुखं सुख को प्रापत 1 T = प्राप्त किया । अन्वयार्थ तत्फलप्राप्तिसिद्धयर्थं त्रिविधेभ्यो धनं महत् । सुपात्रेभ्यः प्रतिदिनं ददावानन्दसंप्लुता ।। २० ।। उनका फल प्राप्त हो इसकी सिद्धि आनंद से भरी उस रानी ने तत्फलप्राप्तिसिद्धयर्थं के लिये आनंदसंप्लुता त्रिविधेभ्यः = तीन प्रकार के सुपात्रेभ्यः सत्पात्रों के लिये, प्रतिदिनं प्रत्येक दिन महत्= विपुल धनं धन को, · = ददौ = दिया । पति के मुख से भावि स्वप्न फल को सुनकर उस चन्द्रमुखी सुन्दर रानी ने शब्दातीत सुख को प्राप्त किया । = C श्लोकार्थ -- स्वप्नों के फल की प्राप्ति हो इसकी सिद्धि के लिये आनन्द से भरी उस रानी ने तीन प्रकार के सुपात्रों को प्रतिदिन विपुल धन दिया । तद्गर्भमागते देवे दिशः सर्वाश्चकाशिरे । गगनं निर्मलं चासीत् भरूतस्त्रिविधा ववुः ||२१|| E -- = रानी के गर्भ में आगते आने देवे = देव के, तद्गर्भ पर, सर्वाः - सारी, दिशः = दिशायें, चकाशिरे चमकने लगीं. गगनं = आकाश, निर्मलं निर्मल, आसीत् = हो गया. च = और, त्रिविधाः = तीन प्रकार की मरूतः = हवायें, ववुः = बहने लगीं। —
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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