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पदंश
जाओ। वहाँ जाने पर निश्चित ही तुम्हारी गरीबी नष्ट हो
जायेगी। इति वाक्यं मुनेः श्रुत्वा तत्क्षणादेव सिद्धिजम् ।
अचलच्छलयात्रायै धनावाप्त्यै नरोत्तमः । १६४।। अन्वयार्थ - मुनेः = मुनिराज के, इति = ऐसे, सिद्धिजं = सिद्धि सम्पन्न.
वाक्यं = वाक्य को, श्रुत्वा = सुनकर. तत्क्षणादेव = उस समय से ही, (सः = वह), नरोत्तमः = श्रेष्ठ ब्राह्मण, धनावाप्त्य :- धन पाने के लिये, शैलयात्रायै = सम्मेदपर्वत की यात्रा
करने के लिये, अचलत् - चल दिया। श्लोकार्थ - मुनिराज के इस प्रकार सिद्धि पूर्ण वाक्य को सुनकर वह
नरोत्तम ब्राह्मण शीघ्र ही धन पाने के लिये सम्मेदगिरि की
यात्रा के लिये चल दिया। पथि गच्छन् स एकाकी भूत्वा गुप्तिसमन्वितम् ।
विद्याधरं महासु तत्रागतमपश्यत् ।।६५।। अन्वयार्थ - पथि = मार्ग पर, गच्छन् = जाते हुये, एकाकी = अकेले.
भूत्वा = होकर, सः - उस ब्राह्मण को, गुप्तिसमन्वितं = गुप्त रहने योग्य धन आदि से युक्त. महासुझं = महान् ज्ञानी, विद्याधरं = विद्याधर को, तत्रागतं = वहाँ आया हुआ.
अपश्यत् - देखा। श्लोकार्थ - मार्ग पर जाते हुये उस एकाकी हुये ब्राह्मण ने गोपनीयता
से पूर्ण या धन वैभव सम्पन्न महान ज्ञानी एक विद्याधर को
वहाँ आया हुआ देखा। तद्विभूतिं स दृष्ट्वा तं निदानमनुबद्धकृत् ।
एतदेव फलं मेऽस्तु यात्रायां मनसार्पयत् ।।६६ ।। अन्वयार्थ .- तं = उस विद्याधर को, (च = और), तद्विभूति = उसके वैभव
को, दृष्ट्वा = देखकर, निदानमनुबद्धकृत = निदान अर्थात् इच्छापूर्वक फल कामना स्वरूप बंध से युक्त, सः = वह ब्राह्मण, मनसा =. मन से. आर्पयत् = प्रेरित हुआ, यात्रायां