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________________ 86 श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य पोदनाख्यपुरे विप्र एक आसीत् पुरोऽधनः । सोमशर्माभिधानोऽसौ महादारिद्रयपीड़ितः ।।६१|| अन्वयार्थ - पोदनाख्यपुरे = पोदनपुर नामक नगर में, एकः = एक, विप्रः ब्राह्मणः - ब्राह्मण, पुरः = सबके सामने अर्थात् स्पष्टतया, अधनः = निर्धन, आसीत् = था, सोमशर्माभिधानः = सोमशानामक, असौ = वह, महादारिद्यपीड़ितः = अत्यधिक दारिद्रय से पीडित, आसीत् = था। _श्लोकार्थ - पोदनपुर नामक नगर में निस्सन्देह रूप से गरीब एक ब्राह्मण रहता था। सोमशर्मा नामक वह दरिद्रता से अत्यधिक पीडित था। स चारणमुनिं दृष्ट्वैकदा तमभिवन्ध वै । प्राह दारिदयपीड़ा मे कथं नश्येद् दयानिधे ।।२।। अन्वयार्थ -- एकदा = एक दिन, सः = उराने. चारणमुनि = चारणऋद्धिधारी, मुनि = मुनि को, दृष्ट्वा = देखकर, तं = उन्हें, अभिवन्ध - प्रणाम करके, यै - निश्चित रूप से. प्राह = बोला, दयानिधे! = हे दयासिन्धु!. मे = मेरी, दारिद्र्यपीड़ा = गरीबी का दुख, कथं = कैसे. नश्येत् = नष्ट होगा। श्लोकार्थ .. एक दिन उस ब्राह्मण चारणऋद्धिधारी मुनिराज को देखकर उन्हें प्रणाम किया और निश्चित मन से उनको पूछा है कृपासिन्धु मेरी गरीबी का दुःख कैसे नष्ट होगा। मुनिनोक्तं तदा विप्र गच्छ सम्मेदपर्वतम् । निश्चयेन गते तत्र दारिद्रयं गमिष्यति ।।६३ ।। __ अन्वयार्थ :- तदा :- तब, मुनिना = मुनिराज द्वारा, उक्तं = कहा गया, विप्र - हे ब्राह्मण! सम्मेदपर्वतं = सम्मेदशिखर पर्वत को. गच्छ = जा, निश्चयेन = निश्चित ही, तत्र = वहाँ, गते = जाने पर. ते = तुम्हारी. दारिद्रयं = गरीबी, गमिष्यति = चली जायेगी। श्लोकार्थ – तब मुनिराज ने कहा- हे विप्र! तुम सम्मेदशिखर पर्वत पर
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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