SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चदशः ४४५ तमब्रवीन्मुनीशाबाद. नृपः = राजा ने . पपृच्छ तलो हप. मार्गमा वा दुनिसत्तमम् । तमब्रवीन्मुनीशानः स्वजनुष्यवृतं शृणु ।।८।। अन्वयार्थ - ततः - उसके बाद, नृपः = राजा ने, मुनिसत्तमं = मुनिराज से, स्वपर्यायान् = अपनी पर्यायों को, पपृच्छ = पूछा, मुनीशानः = मुनिराजों के स्वामी केवलज्ञानी ने, तं = उससे, अब्रवीत् = कहा, स्वजनुष्यवृत्तं = अपने जन्म सम्बंधी समाचार को, शृणु = सुनो। श्लोकार्थ -- उसके बाद राजा ने उन मुनिराज से अपनी पूर्व पर्यायों को पूछा तो वह मुनिश्रेष्ट उस राजा से बोले- राजन् तुम अपने जन्मों से संबंधित वृत्त को सुनो। पूर्वजन्मनि भूपाल त्यया सम्मेदभूभृतः । यात्रा कृता मनोवाग्भ्यां कायेन श्रद्धया मुदा । १५६।। अन्वयार्थ - भूपाल = हे राजन!, त्वया = तुम्हारे द्वारा, पूर्वजन्मनि = पूर्व जन्म में, सम्मेदभूभृतः = सम्मेदशिखर पर्वत की, यात्रा = यात्रा, मुदा - प्रसन्नता से, श्रद्धया -- आस्था के साथ, मनोवाग्भ्यां = मन वाणी से, (च = और), कायेन = शरीर से. कृता = की थी। श्लोकार्थ -. हे राजन्! तुमने अपने पूर्व भव में सम्मेदशिखर पर्वत की यात्रा प्रसन्नता और श्राद्ध के साथ मन,वचन,काय की शुद्धि पूर्वक की थी। तस्मात्त्वमस्मिन्पर्याये भूपोसि हे महानृप। किञ्चिदन्यदपि क्षोणीपले शृणु कथानकम् ।।६।। अन्वयार्थ - तस्मात् = उसी कारण से, अस्मिन् = इस पर्याय में, हे महानृप = हे महा राजन्!, त्वं = तुम, भूपः = सजा, असि = हो, क्षोणीपते = हे नृपश्रेष्ट!, किञ्चिद = कोई. अन्यदपि = दूसरे भी, कथानकं = कथानक को, शृणु = सुनो। श्लोकार्थ – हे राजन्! उस सम्मेदगिरि की यात्रा करने के फल से तुम इस पर्याय में राजा हुये हो। हे नृपश्रेष्ठ! तुम एक कोई अन्य कथानक को भी सुनो।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy