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________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य सुदर्शनो नाम राजा तत्राभूत् तस्य तु प्रिया । नाम्ना विजयसेना सा शीलशोभाखनी स्मृता ।।५५ । । अन्वयार्थ तत्र = वहाँ, सुदर्शनः = सुदर्शन नामक राजा राजा, अभूत् = हुआ था, तस्य = उस राजा की, प्रिया = प्रिय रानी, नाम्ना = नाम से, विजयसेना = विजयसेना, (अभूत् = थी), सा = वह रानी, शीलशोभाखनी शील और सौन्दर्य की खान, स्मृता मानी गयी थी । ४४४ श्लोकार्थ अन्वयार्थ श्लोकार्थ - अन्वयार्थ - — — = एकदा स गतो राजा वनक्रीडार्थमञ्जसा । वने तत्र ददर्शासौ मुनिं ज्वलनसन्निभम् । । ५६ ।। 11 = · वहाँ सुदर्शन नामक एक राजा हुआ था जिसकी प्रिय रानी विजयसेना रूप सौन्दर्य और शील की खान भी । = एकदा = एक दिन, सः = वह, राजा = राजा, वनक्रीडार्थ = वन क्रीड़ा के लिये, अञ्जसा = यथायोग्य रूप से शीघ्र ही, गतः = गया, तत्र - उस, बने = वन में, असौ - उस राजा ने ज्वलनसन्निभम् कान्तिपूर्ण, मुनिं मुनिराज को, ददर्श = देखा | = अनन्तवीर्यनामानं केवलज्ञानदीपितम् । त्रिः परिक्रम्य तं राजा प्रणनाम कृताञ्जलिः । । ५७ ।। कृताञ्जलिः = हाथ जोड़े हुये, राजा = राजा ने केवलज्ञानदीपितं = केवलज्ञान से सुशोभित, अनन्तवीर्यनामानं - अनन्तवीर्य नामक, तं मुनिराज को, त्रिःपरिक्रम्य बार परिक्रमा लगाकर प्रणनाम प्रणाम किया । = = तीन एक दिन वह राजा यथायोग्य रूप से शीघ्र ही वनक्रीड़ा के लिये वन में गया वहाँ उस राजा ने जलते हुये दीपक के समान आभा वाले मुनिराज को देखा । श्लोकार्थ - हाथ जोड़े हुये राजा ने केवलज्ञान से आलोकित अनन्तवीर्य नामक उन मुनिराज को तीन परिक्रमा देकर प्रणाम किया ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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