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________________ पञ्चदश श्लोकार्थ — श्लोकार्थ ४४१ रत्ननिर्मितः = रत्नों से बना, समवसारः समवसरण, कृतः = तैयार किया गया । — चक्रायुधादयस्तत्र गणेन्द्रास्ते तदादिभिः । यथोक्तैर्द्वादशोक्तेषु कोष्ठेषु समवस्थितैः ||४६ ॥ सर्वैः स संस्तुतो देवो भक्तिनम्रकरैर्जनैः | धर्मोपदेशं कृतवान् सर्वेभ्यो दिव्यनादतः ||४७ ।। अन्वयार्थ तत्र = उस समवसरण में, ते आपके अर्थात् भगवान् के, = = — चक्रायुधादयः = चक्रायुध आदि, गणधराः = गणधर ( आसन् = थे), तदादिभिः = उन गणधरों को आदि करके. उक्तेषु कहे गये. द्वादश = बारह, कोष्ठेषु = कोठों में, यथोक्तः = जैसे बताये गये है' तदनुसार, समवस्थितैः बैठे हुये, सर्वैः = सभी भक्तिनम्रकरैः = भक्ति से विनम्र हाथों वाले. जनैः = लोगों के द्वारा, संस्तुतः = स्तुति किये जाते हुये, सः = उन देवः = भगवान् ने दिव्यनादतः = दिव्यध्वनि से, सर्वेभ्यः = सभी के लिये, धर्मोपदेशं धर्मोपदेश को, कृतवान् = किया। तभी इन्द्र आदि देव प्रसन्न होते हुये वहाँ आ गये उनके द्वारा अतिशय आश्चर्यकारी और रत्नों से निर्मित समवसरण की रचना की गयी। = उस समवसरण में उन प्रभु के चक्रायुध आदि गणधर थे। उनको आदि करके बारहों कोठों में यथोक्त क्रम से बैठे हुये सभी भक्ति से हाथ जोड़े हुये लोगों के द्वारा स्तुति किये जाते हुये उन भगवान् ने अपनी दिव्यध्वनि से सभी के लिये धर्मोपदेश दिया। सम्मेदपर्वतं गत्वा सहस्रमुनिसंयुतः । प्रभासकूटे स्थितवान् विशदध्यानतत्परः । । ४६ ।। अन्वयार्थ – जगदीश्वरः जगत् के स्वामी भगवान् शांतिनाथ ने सर्वेषु = सभी उपदेशेषु = निकटवर्ती देशों में, विहरति स्म =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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